- छत्तीसगढ़ में मराठा शासन की स्थापन
- बिम्बजी भोसला (1758 - 87)
बिम्बाजी भोसला रायपुर राज्य के अंतर्गत छत्तीगसढ़ का प्रथम मराठा शासक थे \ उन्होंने न्याय संबंधी सुविधा के लिए रतनपुर में नियमित न्यायालय की स्थापना की तथा
अपनी शासन काल मे राजनांदगांव तथा खुज्जी नामक दो नई जमीदरियो का निर्माण किया\ रतनपुर में रामटेकरी मंदिर का निर्माण एवम विजय दशमी पर स्वर्ण पत्र देने की प्रथा का आरंभ किया |इस समय कौड़ी मुद्रा का प्रचलन था उसके स्थान पर नागपुुुरी मुद्वा का प्रचलन करवाया |
बिम्बा जी ने प्रशासनिक दृस्टि से रतनपुर और रायपुर को एक कर छत्तीसगढ़ राज्य की संज्ञा प्रदान किया था तथा रायपुर स्थित दूधाधारी मठ का पुनर्निर्माााण करवाया | बिम्बाजी ने यहां मराठी भाषा, मोड़ी लिपि, और उर्दू भाषा को प्रचलित कराया , सन 1787 में बिम्बाजी की मृत्यु हो गई इसके पश्चात उनकी पत्नी उमाबाई सती हो गई थी|
2.व्यंकोजी भोसला (1787 -1811 ई.)
- बिम्बाजी की मृतयु के बाद व्यंकोजी को कि छत्तीसगढ़ का राज्य प्राप्त हुआ | व्यंकोजी ने राजधानी रतनपुर में रहकर पूर्व की भांति प्रत्यक्ष शासन करने की अपेक्षा नागपुर में रहकर शासन संचालन करने का निश्चय किया |
- व्यंकोजी यहाँ का शासन सूबेदारों के माध्यम से चलाने लगे| यहीं से छत्तीसगढ़ में सूबेदार पद्धति अथवा सूबा शासन का सूत्रपात हुआ| यह पद्धति छत्तीसगढ़ में ब्रिटिश नियंत्रण होने तक विद्यमान रही|
- छत्तीसगढ़ में सूबा शासन के संस्थापक व्यंकोजी भोसला की 1811 में बनारस में मृत्यु हो गई|
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3.अप्पा साहब (1816 - 1818ई.)
व्यंकोजी भोसला की मृत्यु के पश्चात अप्पा साहब छत्तीसगढ़ के नए शासक नियुक्त किये गए |अपनी नियुक्ति के पश्चात अप्पा साहब ने छत्तीसगढ़ के तत्कालिक सेबेदार बीकाजी गोपाल (1809 -1817) से बहुत बड़ी राशि की मांग की , परन्तु जब बीकाजी गोपाल ने देने में असमर्थता प्रकट की तो अप्पा साहब ने उसे पद से हटा दिया|
4. सूबा शासन (1787 - 1818 )
छत्तीसगढ़ में स्थापित यह सूबा शासन प्रणाली मराठों की उपनिवेशवादी नीति का परिचायक थी | इसके जनक व्यंकोजी भोसला थे | सूबेदार मुख्यालय रतनपुर में रहकर सम्पूर्ण कार्यो का संचालन करते थे |यह पद न तो स्थायी था न ही वंशानुगत , इनकी नियुक्ति ठेकेदारी प्रथा के अनुसार होती थी जो व्यक्ति छत्तीसगढ़ से सर्वाधिक राशि वसूल कर नागपुर भेजने का वादा करता था उसे सूबेदार नियुक्त कर दियाजता था इस दौरान छत्तीसगढ़ में कुल 8 सूबेदार नियुक्त किये गए थे|
- महिपत राव दिनकर(1787 - 90) - छत्तीसगढ़ में नियुक्त होनेवाला प्रथम सूबेदार था| इसके शासन काल मे फारेस्टर नामक यूरोपीय यात्री छत्तीसगढ़ आया था| इसके शासन की सारी शक्तियां बिम्बाजी भोसला की विधवा आनंदी बाई के हाथ मे था|
- विठ्ठल राव दिनककर (1790 - 96) - ये इस क्षेत्र के दूसरे सूबेदार नियुक्त हुए | छत्तीसगढ़ में परगना पद्धति के जनक कहलाते हैं| ये पद्धति 1790 से 1818 तक चलती रही |इस पद्धति के अंतर्गत प्राचीन प्रशानिक इकाई को समाप्त कर समस्त छत्तीगढ़ को परगनों में विभाजित कर दिया गया , जिनकी संख्या 27 थी| परगने का प्रमुख अधिकारी कमविसदर कहलाता था | इसके शासन काल मे यूरोपीय यात्री कैप्टन ब्लंट 1795 में छत्तीसगढ़ की यात्रा की थी|
- केशव गोविंद (1797 -1808) - यह लंबी अवधि तक छत्तीसगढ़ का सूबेदार था |इसके काल मे यूरोपीय यात्री कोलब्रुक ने छत्तीसगढ़ की यात्रा की थी|
- यादव राव दिनकर (1817 - 1818) - छत्तीसगढ़ में सूबा शासन के दौरान का अंतिम सूबेदार था |1818 से छत्तीसगढ़ ब्रिटिश नियंत्रण में आ गया और सूबा शासन स्वयं समाप्त हो गया( 1830 के बाद पुनः 1830 -54 ) के मराठा अधिपत्य के दौरान सूबेदारी पद्धति प्रचलित रही|
5.छत्तीसगढ़ में ब्रिटिश नियंत्रण (1818 - 1830)
1818 में तृतीय आंग्ल मराठा युद्ध मे पराजित होने के ;बाद छत्तीसगढ़ में मराठा शासन समाप्त हो गया | इस युद्ध के बाद नागपुर की संधि के साथ छत्तीसगढ़ अप्रत्यक्ष रूप से ब्रिटिश नियंत्रण में आ गया|ब्रिटिश रेजिडेंट जेनकिन्स ने नागपुर राज्य में व्यवस्था हेतु घोषणा की , जिसके अनुसार उन्हें रघु जी तृतये के वयस्क होने तक नागपुर राज्य अपने हाथ मे लेना था| इस घोषणा के साथ ही छत्तीसगढ़ का नियंत्रण भी ब्रिटिश नियंत्रण में चला गया |
कैप्टन एडमण्ड(1818) - छत्तीसगढ़ में नियुक्त होने वाले प्रथम अधीक्षक
- कैप्टन एग्न्यु (1818 -25) - कैप्टोनन एडमण्ड के बाद अधीक्षक हुए |इन्होंने 1818 में राजधनी परिवर्तन कर नागपुर से रायपुर कर दी | रायपुर पहली बार ब्रिटिश अधीक्षक का मुख्यालय बना |इनके शासन काल मे सोनाखान के जमीदार रामराय ने 1819 ई में विद्रोह किया था| गेंदसिंह का परलकोट विदेओह भी इसी समय हुआ था ।
कैप्टन एग्न्यु ने छत्तीसगढ़ के 27 परगनों को पुनर्गठित कर इन्हें केवल 8 परगनों (रतनपुर, रायपुर, धमतरी , दुर्ग ,धमधा, नवागढ़ ,राजहरा ,खरौद) में सीमित कर दिया | कुछ समय बाद बालोद को भी परगना बना दिया इस प्रकार परगनों की संख्या 9 हो गई |परगनों का प्रमुख पदाधिकारी को कमविसदर कहा जाता था |
कैप्टन सैंडिस - छत्तीसगढ़ में अंग्रेजी वर्ष को मान्यता दी थी ,लोरमी तरेंगा नामक दो तहुतदारी बनाया था|
6.छत्तीसगढ़ में पुनः मराठा शासन (1830- 54)
- भोसला शासक रघुजी तृतीय के वयस्क होने पर छत्तीसगढ़ का पुनः भोसलो के नियंत्रण में चलागया |भोसला अधिकारी कृष्णराव अप्पा को छत्तीसगढ़ का शासन सौंफ दिए | कृष्णाराव अप्पा छत्तीसगढ़ के प्रथम जिलेदार नियुक्त हुई| 1830 में ब्रिटिश अधीक्षक क्राफोर्ड ने कृष्णराव अप्पा को इस क्षेत्र का शासन सौफ दिया इस समय भोसला शासक छत्तीसगढ़ में जिलेदार के माध्यम से शासन करते थे| जिलेदार का मुख्यालय रायपुर था| इस दौरान कुल 8 जिलेदार नियुक्त हुए थे |
- छजत्तीसगढ़ में भोसलो द्वारा नियुक्त अंतिम जिलेदार गोपालराव थे| सन 1853 में रघुजी तृतीय की मृत्यु हो गई इसके पश्चात डलहौजी ने अपनी हड़प नीति के तहत 1854 में नागपुर का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय कर लिया |इसी के साथ छत्तीसगढ़ ब्रिटिश साम्राज्य में शामिल हो गया|
7.छत्तीसगढ़ में मराठा शासन का स्वरूप
- मराठों ने कलचुरी शासकों द्वारा नियुक्त दीवानों को हटाकर गढ़ों की पुरानी इकाई को समाप्त कर दिया| इसके स्थान पर उन्होंने इस क्षेत्र को की परगनों में विभाजित कर दिया|
- मराठा शासन के अंतर्गत छत्तीसगढ़ को दो भागों में विभाजित कर दिया - खालसा क्षेत्र व जमीदारी क्षेत्र |खालसा क्षेत्र पर मराठों ने अपना प्रत्यक्ष शासन रखा , किन्तु जमीदरी क्षेत्र को उन्होंने विभिन जमीदारों के अधिकार में कर दिया|ये जमीदार अपने-अपने क्षेत्र में शासन के लिए स्वतंत्र थे, परन्तु मराठों द्वारा निर्धारित राशि उन्हें नियमित रूप से चुकाने पड़ती थी|
- मराठों ने छत्तीसगढ़ में भूमि व्यवस्था के क्षेत्र में एक नई प्रथा "तालुकदारी प्रथा" का आरंभ किया |इस प्रथा में भूमि सम्भान्धी पट्टों का प्रयोग किया जाता था |मराठा शासकों ने अपने शासन काल मे दो तालुका बनाया - तरेंगा व लोरमी
- मराठा शासन के दौरान ही छत्तीसगढ़ में सती प्रथा का उन्मूलन किया गया तथा बस्तर में जान कैम्पबेल के नेतृत्व में बस्तर व कालाहांडी में नरबलि प्रथा पर रोक लगाई|
- सिक्कों में नागपुरी रुपयों का प्रचलन था |इस समय नागपुर राज्य के 8 प्रकार के सिक्के प्रचलित थे - रघुुुजी का रुपया , अगनुलाला , मनभट , रामजी टाटिया, शिवराम, जरीपटका, चांदी रूपयाा, जबलपुरी रुपया|
- सब शासन के दौरान राजभाष मराठी और लिपि गोड़ी का प्राच्यालन था|
8.छत्तीसगढ़ में ब्रिटिश शासन (1854 - 1947)
- नागपुर राज्य के अंग्रेजी साम्राज्य में विलय के साथ ही 1854 में छत्तीसगढ़ प्रत्यक्ष रूप से ब्रिटिश शासन का अंग बन गया |
- 1 फरवरी 1855 को छत्तीसगढ़ के अंतिम मराठा जिलेदार गोपालराव ने यहां का शासन ब्रिटिश शासन के प्रतिनिधि प्रथम डिप्टी कमिश्नर चार्ल्स सी इलियट को सौप दिया उनका अधिकार क्षेत्र वही था जो ब्रिटिश नियंत्रक काल मे मिस्टर एग्न्यु का था ब्रिटिश शाशन के अंतर्गत सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ सूबे को एक जिले का दर्जा प्रदान किया गया जिसका प्रमुख अधिकारी डिप्टी कमिश्नर कहा गया
- छत्तीसगढ़ में डिप्टी कमिश्नर ने यहां तहसीलदारी व्यवस्था का सूत्रपात किया |छत्तीसगढ़ जिले में तीन तहसीलों का निर्माण किया गया - रायपुर ,धमतरी और रतनपुर | 1 फरवरी 1857 को तहसीलों का पुनर्गठन कर उनकी संख्या बढ़ाकर 5 कर दी गयी | रायपुर ,धमतरी ,रतनपुर , धमधा .नवागढ़ | कुछ समय बाद धमधा के स्थान पर दुर्ग को तहसील मुख्यालय बनाया गया |
- प्रशासनिक सुविधा हेतु 2 नवम्बर 1861 को नागपुर और उसके अधिनस्त क्षेत्रों को मिलाकर " सेेन्ट्रल प्रोविंस" का गठन किया तथा उसका मुख्यालय नागपुर रखा गया
- 1893 - रायपुर में राजकुमार कॉलेज की स्थापना किया गया |
- छत्तीसगढ़ में मराठा शासन की स्थापन
बिम्बाजी भोसला रायपुर राज्य के अंतर्गत छत्तीगसढ़ का प्रथम मराठा शासक थे \ उन्होंने न्याय संबंधी सुविधा के लिए रतनपुर में नियमित न्यायालय की स्थापना की तथा
अपनी शासन काल मे राजनांदगांव तथा खुज्जी नामक दो नई जमीदरियो का निर्माण किया\ रतनपुर में रामटेकरी मंदिर का निर्माण एवम विजय दशमी पर स्वर्ण पत्र देने की प्रथा का आरंभ किया |इस समय कौड़ी मुद्रा का प्रचलन था उसके स्थान पर नागपुुुरी मुद्वा का प्रचलन करवाया |
बिम्बा जी ने प्रशासनिक दृस्टि से रतनपुर और रायपुर को एक कर छत्तीसगढ़ राज्य की संज्ञा प्रदान किया था तथा रायपुर स्थित दूधाधारी मठ का पुनर्निर्माााण करवाया | बिम्बाजी ने यहां मराठी भाषा, मोड़ी लिपि, और उर्दू भाषा को प्रचलित कराया , सन 1787 में बिम्बाजी की मृत्यु हो गई इसके पश्चात उनकी पत्नी उमाबाई सती हो गई थी|
2.व्यंकोजी भोसला (1787 -1811 ई.)
- बिम्बाजी की मृतयु के बाद व्यंकोजी को कि छत्तीसगढ़ का राज्य प्राप्त हुआ | व्यंकोजी ने राजधानी रतनपुर में रहकर पूर्व की भांति प्रत्यक्ष शासन करने की अपेक्षा नागपुर में रहकर शासन संचालन करने का निश्चय किया |
- व्यंकोजी यहाँ का शासन सूबेदारों के माध्यम से चलाने लगे| यहीं से छत्तीसगढ़ में सूबेदार पद्धति अथवा सूबा शासन का सूत्रपात हुआ| यह पद्धति छत्तीसगढ़ में ब्रिटिश नियंत्रण होने तक विद्यमान रही|
- छत्तीसगढ़ में सूबा शासन के संस्थापक व्यंकोजी भोसला की 1811 में बनारस में मृत्यु हो गई|
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3.अप्पा साहब (1816 - 1818ई.)
व्यंकोजी भोसला की मृत्यु के पश्चात अप्पा साहब छत्तीसगढ़ के नए शासक नियुक्त किये गए |अपनी नियुक्ति के पश्चात अप्पा साहब ने छत्तीसगढ़ के तत्कालिक सेबेदार बीकाजी गोपाल (1809 -1817) से बहुत बड़ी राशि की मांग की , परन्तु जब बीकाजी गोपाल ने देने में असमर्थता प्रकट की तो अप्पा साहब ने उसे पद से हटा दिया|
4. सूबा शासन (1787 - 1818 )
छत्तीसगढ़ में स्थापित यह सूबा शासन प्रणाली मराठों की उपनिवेशवादी नीति का परिचायक थी | इसके जनक व्यंकोजी भोसला थे | सूबेदार मुख्यालय रतनपुर में रहकर सम्पूर्ण कार्यो का संचालन करते थे |यह पद न तो स्थायी था न ही वंशानुगत , इनकी नियुक्ति ठेकेदारी प्रथा के अनुसार होती थी जो व्यक्ति छत्तीसगढ़ से सर्वाधिक राशि वसूल कर नागपुर भेजने का वादा करता था उसे सूबेदार नियुक्त कर दियाजता था इस दौरान छत्तीसगढ़ में कुल 8 सूबेदार नियुक्त किये गए थे|
- महिपत राव दिनकर(1787 - 90) - छत्तीसगढ़ में नियुक्त होनेवाला प्रथम सूबेदार था| इसके शासन काल मे फारेस्टर नामक यूरोपीय यात्री छत्तीसगढ़ आया था| इसके शासन की सारी शक्तियां बिम्बाजी भोसला की विधवा आनंदी बाई के हाथ मे था|
- विठ्ठल राव दिनककर (1790 - 96) - ये इस क्षेत्र के दूसरे सूबेदार नियुक्त हुए | छत्तीसगढ़ में परगना पद्धति के जनक कहलाते हैं| ये पद्धति 1790 से 1818 तक चलती रही |इस पद्धति के अंतर्गत प्राचीन प्रशानिक इकाई को समाप्त कर समस्त छत्तीगढ़ को परगनों में विभाजित कर दिया गया , जिनकी संख्या 27 थी| परगने का प्रमुख अधिकारी कमविसदर कहलाता था | इसके शासन काल मे यूरोपीय यात्री कैप्टन ब्लंट 1795 में छत्तीसगढ़ की यात्रा की थी|
- केशव गोविंद (1797 -1808) - यह लंबी अवधि तक छत्तीसगढ़ का सूबेदार था |इसके काल मे यूरोपीय यात्री कोलब्रुक ने छत्तीसगढ़ की यात्रा की थी|
- यादव राव दिनकर (1817 - 1818) - छत्तीसगढ़ में सूबा शासन के दौरान का अंतिम सूबेदार था |1818 से छत्तीसगढ़ ब्रिटिश नियंत्रण में आ गया और सूबा शासन स्वयं समाप्त हो गया( 1830 के बाद पुनः 1830 -54 ) के मराठा अधिपत्य के दौरान सूबेदारी पद्धति प्रचलित रही|
5.छत्तीसगढ़ में ब्रिटिश नियंत्रण (1818 - 1830)
1818 में तृतीय आंग्ल मराठा युद्ध मे पराजित होने के ;बाद छत्तीसगढ़ में मराठा शासन समाप्त हो गया | इस युद्ध के बाद नागपुर की संधि के साथ छत्तीसगढ़ अप्रत्यक्ष रूप से ब्रिटिश नियंत्रण में आ गया|ब्रिटिश रेजिडेंट जेनकिन्स ने नागपुर राज्य में व्यवस्था हेतु घोषणा की , जिसके अनुसार उन्हें रघु जी तृतये के वयस्क होने तक नागपुर राज्य अपने हाथ मे लेना था| इस घोषणा के साथ ही छत्तीसगढ़ का नियंत्रण भी ब्रिटिश नियंत्रण में चला गया |
कैप्टन एडमण्ड(1818) - छत्तीसगढ़ में नियुक्त होने वाले प्रथम अधीक्षक
- कैप्टन एग्न्यु (1818 -25) - कैप्टोनन एडमण्ड के बाद अधीक्षक हुए |इन्होंने 1818 में राजधनी परिवर्तन कर नागपुर से रायपुर कर दी | रायपुर पहली बार ब्रिटिश अधीक्षक का मुख्यालय बना |इनके शासन काल मे सोनाखान के जमीदार रामराय ने 1819 ई में विद्रोह किया था| गेंदसिंह का परलकोट विदेओह भी इसी समय हुआ था ।
कैप्टन एग्न्यु ने छत्तीसगढ़ के 27 परगनों को पुनर्गठित कर इन्हें केवल 8 परगनों (रतनपुर, रायपुर, धमतरी , दुर्ग ,धमधा, नवागढ़ ,राजहरा ,खरौद) में सीमित कर दिया | कुछ समय बाद बालोद को भी परगना बना दिया इस प्रकार परगनों की संख्या 9 हो गई |परगनों का प्रमुख पदाधिकारी को कमविसदर कहा जाता था |
कैप्टन सैंडिस - छत्तीसगढ़ में अंग्रेजी वर्ष को मान्यता दी थी ,लोरमी तरेंगा नामक दो तहुतदारी बनाया था|
6.छत्तीसगढ़ में पुनः मराठा शासन (1830- 54)
- भोसला शासक रघुजी तृतीय के वयस्क होने पर छत्तीसगढ़ का पुनः भोसलो के नियंत्रण में चलागया |भोसला अधिकारी कृष्णराव अप्पा को छत्तीसगढ़ का शासन सौंफ दिए | कृष्णाराव अप्पा छत्तीसगढ़ के प्रथम जिलेदार नियुक्त हुई| 1830 में ब्रिटिश अधीक्षक क्राफोर्ड ने कृष्णराव अप्पा को इस क्षेत्र का शासन सौफ दिया इस समय भोसला शासक छत्तीसगढ़ में जिलेदार के माध्यम से शासन करते थे| जिलेदार का मुख्यालय रायपुर था| इस दौरान कुल 8 जिलेदार नियुक्त हुए थे |
- छजत्तीसगढ़ में भोसलो द्वारा नियुक्त अंतिम जिलेदार गोपालराव थे| सन 1853 में रघुजी तृतीय की मृत्यु हो गई इसके पश्चात डलहौजी ने अपनी हड़प नीति के तहत 1854 में नागपुर का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय कर लिया |इसी के साथ छत्तीसगढ़ ब्रिटिश साम्राज्य में शामिल हो गया|
7.छत्तीसगढ़ में मराठा शासन का स्वरूप
- मराठों ने कलचुरी शासकों द्वारा नियुक्त दीवानों को हटाकर गढ़ों की पुरानी इकाई को समाप्त कर दिया| इसके स्थान पर उन्होंने इस क्षेत्र को की परगनों में विभाजित कर दिया|
- मराठा शासन के अंतर्गत छत्तीसगढ़ को दो भागों में विभाजित कर दिया - खालसा क्षेत्र व जमीदारी क्षेत्र |खालसा क्षेत्र पर मराठों ने अपना प्रत्यक्ष शासन रखा , किन्तु जमीदरी क्षेत्र को उन्होंने विभिन जमीदारों के अधिकार में कर दिया|ये जमीदार अपने-अपने क्षेत्र में शासन के लिए स्वतंत्र थे, परन्तु मराठों द्वारा निर्धारित राशि उन्हें नियमित रूप से चुकाने पड़ती थी|
- मराठों ने छत्तीसगढ़ में भूमि व्यवस्था के क्षेत्र में एक नई प्रथा "तालुकदारी प्रथा" का आरंभ किया |इस प्रथा में भूमि सम्भान्धी पट्टों का प्रयोग किया जाता था |मराठा शासकों ने अपने शासन काल मे दो तालुका बनाया - तरेंगा व लोरमी
- मराठा शासन के दौरान ही छत्तीसगढ़ में सती प्रथा का उन्मूलन किया गया तथा बस्तर में जान कैम्पबेल के नेतृत्व में बस्तर व कालाहांडी में नरबलि प्रथा पर रोक लगाई|
- सिक्कों में नागपुरी रुपयों का प्रचलन था |इस समय नागपुर राज्य के 8 प्रकार के सिक्के प्रचलित थे - रघुुुजी का रुपया , अगनुलाला , मनभट , रामजी टाटिया, शिवराम, जरीपटका, चांदी रूपयाा, जबलपुरी रुपया|
- सब शासन के दौरान राजभाष मराठी और लिपि गोड़ी का प्राच्यालन था|
8.छत्तीसगढ़ में ब्रिटिश शासन (1854 - 1947)
- नागपुर राज्य के अंग्रेजी साम्राज्य में विलय के साथ ही 1854 में छत्तीसगढ़ प्रत्यक्ष रूप से ब्रिटिश शासन का अंग बन गया |
- 1 फरवरी 1855 को छत्तीसगढ़ के अंतिम मराठा जिलेदार गोपालराव ने यहां का शासन ब्रिटिश शासन के प्रतिनिधि प्रथम डिप्टी कमिश्नर चार्ल्स सी इलियट को सौप दिया उनका अधिकार क्षेत्र वही था जो ब्रिटिश नियंत्रक काल मे मिस्टर एग्न्यु का था ब्रिटिश शाशन के अंतर्गत सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ सूबे को एक जिले का दर्जा प्रदान किया गया जिसका प्रमुख अधिकारी डिप्टी कमिश्नर कहा गया
- छत्तीसगढ़ में डिप्टी कमिश्नर ने यहां तहसीलदारी व्यवस्था का सूत्रपात किया |छत्तीसगढ़ जिले में तीन तहसीलों का निर्माण किया गया - रायपुर ,धमतरी और रतनपुर | 1 फरवरी 1857 को तहसीलों का पुनर्गठन कर उनकी संख्या बढ़ाकर 5 कर दी गयी | रायपुर ,धमतरी ,रतनपुर , धमधा .नवागढ़ | कुछ समय बाद धमधा के स्थान पर दुर्ग को तहसील मुख्यालय बनाया गया |
- प्रशासनिक सुविधा हेतु 2 नवम्बर 1861 को नागपुर और उसके अधिनस्त क्षेत्रों को मिलाकर " सेेन्ट्रल प्रोविंस" का गठन किया तथा उसका मुख्यालय नागपुर रखा गया
- 1893 - रायपुर में राजकुमार कॉलेज की स्थापना किया गया |
अपनी शासन काल मे राजनांदगांव तथा खुज्जी नामक दो नई जमीदरियो का निर्माण किया\ रतनपुर में रामटेकरी मंदिर का निर्माण एवम विजय दशमी पर स्वर्ण पत्र देने की प्रथा का आरंभ किया |इस समय कौड़ी मुद्रा का प्रचलन था उसके स्थान पर नागपुुुरी मुद्वा का प्रचलन करवाया |
2.व्यंकोजी भोसला (1787 -1811 ई.)
- बिम्बाजी की मृतयु के बाद व्यंकोजी को कि छत्तीसगढ़ का राज्य प्राप्त हुआ | व्यंकोजी ने राजधानी रतनपुर में रहकर पूर्व की भांति प्रत्यक्ष शासन करने की अपेक्षा नागपुर में रहकर शासन संचालन करने का निश्चय किया |
- व्यंकोजी यहाँ का शासन सूबेदारों के माध्यम से चलाने लगे| यहीं से छत्तीसगढ़ में सूबेदार पद्धति अथवा सूबा शासन का सूत्रपात हुआ| यह पद्धति छत्तीसगढ़ में ब्रिटिश नियंत्रण होने तक विद्यमान रही|
- छत्तीसगढ़ में सूबा शासन के संस्थापक व्यंकोजी भोसला की 1811 में बनारस में मृत्यु हो गई|
यह भी पढें👉 छत्तीसगढ़ की लोक कला एवं संस्कृति https://file-link.net/246001/छत्तीसगढ़ी
3.अप्पा साहब (1816 - 1818ई.)
व्यंकोजी भोसला की मृत्यु के पश्चात अप्पा साहब छत्तीसगढ़ के नए शासक नियुक्त किये गए |अपनी नियुक्ति के पश्चात अप्पा साहब ने छत्तीसगढ़ के तत्कालिक सेबेदार बीकाजी गोपाल (1809 -1817) से बहुत बड़ी राशि की मांग की , परन्तु जब बीकाजी गोपाल ने देने में असमर्थता प्रकट की तो अप्पा साहब ने उसे पद से हटा दिया|
4. सूबा शासन (1787 - 1818 )
छत्तीसगढ़ में स्थापित यह सूबा शासन प्रणाली मराठों की उपनिवेशवादी नीति का परिचायक थी | इसके जनक व्यंकोजी भोसला थे | सूबेदार मुख्यालय रतनपुर में रहकर सम्पूर्ण कार्यो का संचालन करते थे |यह पद न तो स्थायी था न ही वंशानुगत , इनकी नियुक्ति ठेकेदारी प्रथा के अनुसार होती थी जो व्यक्ति छत्तीसगढ़ से सर्वाधिक राशि वसूल कर नागपुर भेजने का वादा करता था उसे सूबेदार नियुक्त कर दियाजता था इस दौरान छत्तीसगढ़ में कुल 8 सूबेदार नियुक्त किये गए थे|
- महिपत राव दिनकर(1787 - 90) - छत्तीसगढ़ में नियुक्त होनेवाला प्रथम सूबेदार था| इसके शासन काल मे फारेस्टर नामक यूरोपीय यात्री छत्तीसगढ़ आया था| इसके शासन की सारी शक्तियां बिम्बाजी भोसला की विधवा आनंदी बाई के हाथ मे था|
- विठ्ठल राव दिनककर (1790 - 96) - ये इस क्षेत्र के दूसरे सूबेदार नियुक्त हुए | छत्तीसगढ़ में परगना पद्धति के जनक कहलाते हैं| ये पद्धति 1790 से 1818 तक चलती रही |इस पद्धति के अंतर्गत प्राचीन प्रशानिक इकाई को समाप्त कर समस्त छत्तीगढ़ को परगनों में विभाजित कर दिया गया , जिनकी संख्या 27 थी| परगने का प्रमुख अधिकारी कमविसदर कहलाता था | इसके शासन काल मे यूरोपीय यात्री कैप्टन ब्लंट 1795 में छत्तीसगढ़ की यात्रा की थी|
- केशव गोविंद (1797 -1808) - यह लंबी अवधि तक छत्तीसगढ़ का सूबेदार था |इसके काल मे यूरोपीय यात्री कोलब्रुक ने छत्तीसगढ़ की यात्रा की थी|
- यादव राव दिनकर (1817 - 1818) - छत्तीसगढ़ में सूबा शासन के दौरान का अंतिम सूबेदार था |1818 से छत्तीसगढ़ ब्रिटिश नियंत्रण में आ गया और सूबा शासन स्वयं समाप्त हो गया( 1830 के बाद पुनः 1830 -54 ) के मराठा अधिपत्य के दौरान सूबेदारी पद्धति प्रचलित रही|
5.छत्तीसगढ़ में ब्रिटिश नियंत्रण (1818 - 1830)
1818 में तृतीय आंग्ल मराठा युद्ध मे पराजित होने के ;बाद छत्तीसगढ़ में मराठा शासन समाप्त हो गया | इस युद्ध के बाद नागपुर की संधि के साथ छत्तीसगढ़ अप्रत्यक्ष रूप से ब्रिटिश नियंत्रण में आ गया|ब्रिटिश रेजिडेंट जेनकिन्स ने नागपुर राज्य में व्यवस्था हेतु घोषणा की , जिसके अनुसार उन्हें रघु जी तृतये के वयस्क होने तक नागपुर राज्य अपने हाथ मे लेना था| इस घोषणा के साथ ही छत्तीसगढ़ का नियंत्रण भी ब्रिटिश नियंत्रण में चला गया |
कैप्टन एडमण्ड(1818) - छत्तीसगढ़ में नियुक्त होने वाले प्रथम अधीक्षक
- कैप्टन एग्न्यु (1818 -25) - कैप्टोनन एडमण्ड के बाद अधीक्षक हुए |इन्होंने 1818 में राजधनी परिवर्तन कर नागपुर से रायपुर कर दी | रायपुर पहली बार ब्रिटिश अधीक्षक का मुख्यालय बना |इनके शासन काल मे सोनाखान के जमीदार रामराय ने 1819 ई में विद्रोह किया था| गेंदसिंह का परलकोट विदेओह भी इसी समय हुआ था ।
कैप्टन एग्न्यु ने छत्तीसगढ़ के 27 परगनों को पुनर्गठित कर इन्हें केवल 8 परगनों (रतनपुर, रायपुर, धमतरी , दुर्ग ,धमधा, नवागढ़ ,राजहरा ,खरौद) में सीमित कर दिया | कुछ समय बाद बालोद को भी परगना बना दिया इस प्रकार परगनों की संख्या 9 हो गई |परगनों का प्रमुख पदाधिकारी को कमविसदर कहा जाता था |
कैप्टन सैंडिस - छत्तीसगढ़ में अंग्रेजी वर्ष को मान्यता दी थी ,लोरमी तरेंगा नामक दो तहुतदारी बनाया था|
6.छत्तीसगढ़ में पुनः मराठा शासन (1830- 54)
- भोसला शासक रघुजी तृतीय के वयस्क होने पर छत्तीसगढ़ का पुनः भोसलो के नियंत्रण में चलागया |भोसला अधिकारी कृष्णराव अप्पा को छत्तीसगढ़ का शासन सौंफ दिए | कृष्णाराव अप्पा छत्तीसगढ़ के प्रथम जिलेदार नियुक्त हुई| 1830 में ब्रिटिश अधीक्षक क्राफोर्ड ने कृष्णराव अप्पा को इस क्षेत्र का शासन सौफ दिया इस समय भोसला शासक छत्तीसगढ़ में जिलेदार के माध्यम से शासन करते थे| जिलेदार का मुख्यालय रायपुर था| इस दौरान कुल 8 जिलेदार नियुक्त हुए थे |
- छजत्तीसगढ़ में भोसलो द्वारा नियुक्त अंतिम जिलेदार गोपालराव थे| सन 1853 में रघुजी तृतीय की मृत्यु हो गई इसके पश्चात डलहौजी ने अपनी हड़प नीति के तहत 1854 में नागपुर का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय कर लिया |इसी के साथ छत्तीसगढ़ ब्रिटिश साम्राज्य में शामिल हो गया|
7.छत्तीसगढ़ में मराठा शासन का स्वरूप
- मराठों ने कलचुरी शासकों द्वारा नियुक्त दीवानों को हटाकर गढ़ों की पुरानी इकाई को समाप्त कर दिया| इसके स्थान पर उन्होंने इस क्षेत्र को की परगनों में विभाजित कर दिया|
- मराठा शासन के अंतर्गत छत्तीसगढ़ को दो भागों में विभाजित कर दिया - खालसा क्षेत्र व जमीदारी क्षेत्र |खालसा क्षेत्र पर मराठों ने अपना प्रत्यक्ष शासन रखा , किन्तु जमीदरी क्षेत्र को उन्होंने विभिन जमीदारों के अधिकार में कर दिया|ये जमीदार अपने-अपने क्षेत्र में शासन के लिए स्वतंत्र थे, परन्तु मराठों द्वारा निर्धारित राशि उन्हें नियमित रूप से चुकाने पड़ती थी|
- मराठों ने छत्तीसगढ़ में भूमि व्यवस्था के क्षेत्र में एक नई प्रथा "तालुकदारी प्रथा" का आरंभ किया |इस प्रथा में भूमि सम्भान्धी पट्टों का प्रयोग किया जाता था |मराठा शासकों ने अपने शासन काल मे दो तालुका बनाया - तरेंगा व लोरमी
- मराठा शासन के दौरान ही छत्तीसगढ़ में सती प्रथा का उन्मूलन किया गया तथा बस्तर में जान कैम्पबेल के नेतृत्व में बस्तर व कालाहांडी में नरबलि प्रथा पर रोक लगाई|
- सिक्कों में नागपुरी रुपयों का प्रचलन था |इस समय नागपुर राज्य के 8 प्रकार के सिक्के प्रचलित थे - रघुुुजी का रुपया , अगनुलाला , मनभट , रामजी टाटिया, शिवराम, जरीपटका, चांदी रूपयाा, जबलपुरी रुपया|
- सब शासन के दौरान राजभाष मराठी और लिपि गोड़ी का प्राच्यालन था|
8.छत्तीसगढ़ में ब्रिटिश शासन (1854 - 1947)
- नागपुर राज्य के अंग्रेजी साम्राज्य में विलय के साथ ही 1854 में छत्तीसगढ़ प्रत्यक्ष रूप से ब्रिटिश शासन का अंग बन गया |
- 1 फरवरी 1855 को छत्तीसगढ़ के अंतिम मराठा जिलेदार गोपालराव ने यहां का शासन ब्रिटिश शासन के प्रतिनिधि प्रथम डिप्टी कमिश्नर चार्ल्स सी इलियट को सौप दिया उनका अधिकार क्षेत्र वही था जो ब्रिटिश नियंत्रक काल मे मिस्टर एग्न्यु का था ब्रिटिश शाशन के अंतर्गत सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ सूबे को एक जिले का दर्जा प्रदान किया गया जिसका प्रमुख अधिकारी डिप्टी कमिश्नर कहा गया
- छत्तीसगढ़ में डिप्टी कमिश्नर ने यहां तहसीलदारी व्यवस्था का सूत्रपात किया |छत्तीसगढ़ जिले में तीन तहसीलों का निर्माण किया गया - रायपुर ,धमतरी और रतनपुर | 1 फरवरी 1857 को तहसीलों का पुनर्गठन कर उनकी संख्या बढ़ाकर 5 कर दी गयी | रायपुर ,धमतरी ,रतनपुर , धमधा .नवागढ़ | कुछ समय बाद धमधा के स्थान पर दुर्ग को तहसील मुख्यालय बनाया गया |
- प्रशासनिक सुविधा हेतु 2 नवम्बर 1861 को नागपुर और उसके अधिनस्त क्षेत्रों को मिलाकर " सेेन्ट्रल प्रोविंस" का गठन किया तथा उसका मुख्यालय नागपुर रखा गया
- 1893 - रायपुर में राजकुमार कॉलेज की स्थापना किया गया |
- बिम्बाजी की मृतयु के बाद व्यंकोजी को कि छत्तीसगढ़ का राज्य प्राप्त हुआ | व्यंकोजी ने राजधानी रतनपुर में रहकर पूर्व की भांति प्रत्यक्ष शासन करने की अपेक्षा नागपुर में रहकर शासन संचालन करने का निश्चय किया |
- व्यंकोजी यहाँ का शासन सूबेदारों के माध्यम से चलाने लगे| यहीं से छत्तीसगढ़ में सूबेदार पद्धति अथवा सूबा शासन का सूत्रपात हुआ| यह पद्धति छत्तीसगढ़ में ब्रिटिश नियंत्रण होने तक विद्यमान रही|
- छत्तीसगढ़ में सूबा शासन के संस्थापक व्यंकोजी भोसला की 1811 में बनारस में मृत्यु हो गई|
3.अप्पा साहब (1816 - 1818ई.)
व्यंकोजी भोसला की मृत्यु के पश्चात अप्पा साहब छत्तीसगढ़ के नए शासक नियुक्त किये गए |अपनी नियुक्ति के पश्चात अप्पा साहब ने छत्तीसगढ़ के तत्कालिक सेबेदार बीकाजी गोपाल (1809 -1817) से बहुत बड़ी राशि की मांग की , परन्तु जब बीकाजी गोपाल ने देने में असमर्थता प्रकट की तो अप्पा साहब ने उसे पद से हटा दिया|
4. सूबा शासन (1787 - 1818 )
4. सूबा शासन (1787 - 1818 )
छत्तीसगढ़ में स्थापित यह सूबा शासन प्रणाली मराठों की उपनिवेशवादी नीति का परिचायक थी | इसके जनक व्यंकोजी भोसला थे | सूबेदार मुख्यालय रतनपुर में रहकर सम्पूर्ण कार्यो का संचालन करते थे |यह पद न तो स्थायी था न ही वंशानुगत , इनकी नियुक्ति ठेकेदारी प्रथा के अनुसार होती थी जो व्यक्ति छत्तीसगढ़ से सर्वाधिक राशि वसूल कर नागपुर भेजने का वादा करता था उसे सूबेदार नियुक्त कर दियाजता था इस दौरान छत्तीसगढ़ में कुल 8 सूबेदार नियुक्त किये गए थे|
- महिपत राव दिनकर(1787 - 90) - छत्तीसगढ़ में नियुक्त होनेवाला प्रथम सूबेदार था| इसके शासन काल मे फारेस्टर नामक यूरोपीय यात्री छत्तीसगढ़ आया था| इसके शासन की सारी शक्तियां बिम्बाजी भोसला की विधवा आनंदी बाई के हाथ मे था|
- विठ्ठल राव दिनककर (1790 - 96) - ये इस क्षेत्र के दूसरे सूबेदार नियुक्त हुए | छत्तीसगढ़ में परगना पद्धति के जनक कहलाते हैं| ये पद्धति 1790 से 1818 तक चलती रही |इस पद्धति के अंतर्गत प्राचीन प्रशानिक इकाई को समाप्त कर समस्त छत्तीगढ़ को परगनों में विभाजित कर दिया गया , जिनकी संख्या 27 थी| परगने का प्रमुख अधिकारी कमविसदर कहलाता था | इसके शासन काल मे यूरोपीय यात्री कैप्टन ब्लंट 1795 में छत्तीसगढ़ की यात्रा की थी|
- केशव गोविंद (1797 -1808) - यह लंबी अवधि तक छत्तीसगढ़ का सूबेदार था |इसके काल मे यूरोपीय यात्री कोलब्रुक ने छत्तीसगढ़ की यात्रा की थी|
- महिपत राव दिनकर(1787 - 90) - छत्तीसगढ़ में नियुक्त होनेवाला प्रथम सूबेदार था| इसके शासन काल मे फारेस्टर नामक यूरोपीय यात्री छत्तीसगढ़ आया था| इसके शासन की सारी शक्तियां बिम्बाजी भोसला की विधवा आनंदी बाई के हाथ मे था|
- विठ्ठल राव दिनककर (1790 - 96) - ये इस क्षेत्र के दूसरे सूबेदार नियुक्त हुए | छत्तीसगढ़ में परगना पद्धति के जनक कहलाते हैं| ये पद्धति 1790 से 1818 तक चलती रही |इस पद्धति के अंतर्गत प्राचीन प्रशानिक इकाई को समाप्त कर समस्त छत्तीगढ़ को परगनों में विभाजित कर दिया गया , जिनकी संख्या 27 थी| परगने का प्रमुख अधिकारी कमविसदर कहलाता था | इसके शासन काल मे यूरोपीय यात्री कैप्टन ब्लंट 1795 में छत्तीसगढ़ की यात्रा की थी|
- केशव गोविंद (1797 -1808) - यह लंबी अवधि तक छत्तीसगढ़ का सूबेदार था |इसके काल मे यूरोपीय यात्री कोलब्रुक ने छत्तीसगढ़ की यात्रा की थी|
- यादव राव दिनकर (1817 - 1818) - छत्तीसगढ़ में सूबा शासन के दौरान का अंतिम सूबेदार था |1818 से छत्तीसगढ़ ब्रिटिश नियंत्रण में आ गया और सूबा शासन स्वयं समाप्त हो गया( 1830 के बाद पुनः 1830 -54 ) के मराठा अधिपत्य के दौरान सूबेदारी पद्धति प्रचलित रही|
5.छत्तीसगढ़ में ब्रिटिश नियंत्रण (1818 - 1830)
1818 में तृतीय आंग्ल मराठा युद्ध मे पराजित होने के ;बाद छत्तीसगढ़ में मराठा शासन समाप्त हो गया | इस युद्ध के बाद नागपुर की संधि के साथ छत्तीसगढ़ अप्रत्यक्ष रूप से ब्रिटिश नियंत्रण में आ गया|ब्रिटिश रेजिडेंट जेनकिन्स ने नागपुर राज्य में व्यवस्था हेतु घोषणा की , जिसके अनुसार उन्हें रघु जी तृतये के वयस्क होने तक नागपुर राज्य अपने हाथ मे लेना था| इस घोषणा के साथ ही छत्तीसगढ़ का नियंत्रण भी ब्रिटिश नियंत्रण में चला गया |
- कैप्टन एग्न्यु (1818 -25) - कैप्टोनन एडमण्ड के बाद अधीक्षक हुए |इन्होंने 1818 में राजधनी परिवर्तन कर नागपुर से रायपुर कर दी | रायपुर पहली बार ब्रिटिश अधीक्षक का मुख्यालय बना |इनके शासन काल मे सोनाखान के जमीदार रामराय ने 1819 ई में विद्रोह किया था| गेंदसिंह का परलकोट विदेओह भी इसी समय हुआ था ।
कैप्टन सैंडिस - छत्तीसगढ़ में अंग्रेजी वर्ष को मान्यता दी थी ,लोरमी तरेंगा नामक दो तहुतदारी बनाया था|
6.छत्तीसगढ़ में पुनः मराठा शासन (1830- 54)
- भोसला शासक रघुजी तृतीय के वयस्क होने पर छत्तीसगढ़ का पुनः भोसलो के नियंत्रण में चलागया |भोसला अधिकारी कृष्णराव अप्पा को छत्तीसगढ़ का शासन सौंफ दिए | कृष्णाराव अप्पा छत्तीसगढ़ के प्रथम जिलेदार नियुक्त हुई| 1830 में ब्रिटिश अधीक्षक क्राफोर्ड ने कृष्णराव अप्पा को इस क्षेत्र का शासन सौफ दिया इस समय भोसला शासक छत्तीसगढ़ में जिलेदार के माध्यम से शासन करते थे| जिलेदार का मुख्यालय रायपुर था| इस दौरान कुल 8 जिलेदार नियुक्त हुए थे |
- छजत्तीसगढ़ में भोसलो द्वारा नियुक्त अंतिम जिलेदार गोपालराव थे| सन 1853 में रघुजी तृतीय की मृत्यु हो गई इसके पश्चात डलहौजी ने अपनी हड़प नीति के तहत 1854 में नागपुर का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय कर लिया |इसी के साथ छत्तीसगढ़ ब्रिटिश साम्राज्य में शामिल हो गया|
7.छत्तीसगढ़ में मराठा शासन का स्वरूप
- मराठों ने कलचुरी शासकों द्वारा नियुक्त दीवानों को हटाकर गढ़ों की पुरानी इकाई को समाप्त कर दिया| इसके स्थान पर उन्होंने इस क्षेत्र को की परगनों में विभाजित कर दिया|
- मराठा शासन के अंतर्गत छत्तीसगढ़ को दो भागों में विभाजित कर दिया - खालसा क्षेत्र व जमीदारी क्षेत्र |खालसा क्षेत्र पर मराठों ने अपना प्रत्यक्ष शासन रखा , किन्तु जमीदरी क्षेत्र को उन्होंने विभिन जमीदारों के अधिकार में कर दिया|ये जमीदार अपने-अपने क्षेत्र में शासन के लिए स्वतंत्र थे, परन्तु मराठों द्वारा निर्धारित राशि उन्हें नियमित रूप से चुकाने पड़ती थी|
- मराठों ने छत्तीसगढ़ में भूमि व्यवस्था के क्षेत्र में एक नई प्रथा "तालुकदारी प्रथा" का आरंभ किया |इस प्रथा में भूमि सम्भान्धी पट्टों का प्रयोग किया जाता था |मराठा शासकों ने अपने शासन काल मे दो तालुका बनाया - तरेंगा व लोरमी
- मराठा शासन के दौरान ही छत्तीसगढ़ में सती प्रथा का उन्मूलन किया गया तथा बस्तर में जान कैम्पबेल के नेतृत्व में बस्तर व कालाहांडी में नरबलि प्रथा पर रोक लगाई|
- सिक्कों में नागपुरी रुपयों का प्रचलन था |इस समय नागपुर राज्य के 8 प्रकार के सिक्के प्रचलित थे - रघुुुजी का रुपया , अगनुलाला , मनभट , रामजी टाटिया, शिवराम, जरीपटका, चांदी रूपयाा, जबलपुरी रुपया|
- सब शासन के दौरान राजभाष मराठी और लिपि गोड़ी का प्राच्यालन था|
8.छत्तीसगढ़ में ब्रिटिश शासन (1854 - 1947)
- नागपुर राज्य के अंग्रेजी साम्राज्य में विलय के साथ ही 1854 में छत्तीसगढ़ प्रत्यक्ष रूप से ब्रिटिश शासन का अंग बन गया |
- 1 फरवरी 1855 को छत्तीसगढ़ के अंतिम मराठा जिलेदार गोपालराव ने यहां का शासन ब्रिटिश शासन के प्रतिनिधि प्रथम डिप्टी कमिश्नर चार्ल्स सी इलियट को सौप दिया उनका अधिकार क्षेत्र वही था जो ब्रिटिश नियंत्रक काल मे मिस्टर एग्न्यु का था ब्रिटिश शाशन के अंतर्गत सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ सूबे को एक जिले का दर्जा प्रदान किया गया जिसका प्रमुख अधिकारी डिप्टी कमिश्नर कहा गया
- छत्तीसगढ़ में डिप्टी कमिश्नर ने यहां तहसीलदारी व्यवस्था का सूत्रपात किया |छत्तीसगढ़ जिले में तीन तहसीलों का निर्माण किया गया - रायपुर ,धमतरी और रतनपुर | 1 फरवरी 1857 को तहसीलों का पुनर्गठन कर उनकी संख्या बढ़ाकर 5 कर दी गयी | रायपुर ,धमतरी ,रतनपुर , धमधा .नवागढ़ | कुछ समय बाद धमधा के स्थान पर दुर्ग को तहसील मुख्यालय बनाया गया |
- प्रशासनिक सुविधा हेतु 2 नवम्बर 1861 को नागपुर और उसके अधिनस्त क्षेत्रों को मिलाकर " सेेन्ट्रल प्रोविंस" का गठन किया तथा उसका मुख्यालय नागपुर रखा गया
- 1893 - रायपुर में राजकुमार कॉलेज की स्थापना किया गया |
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