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छत्तीसगढ़ में राष्टीय आंदोलन व स्वधीनता संग्रम्मी छत्तीसगढ़ का योगदान (Contribution of national movement and freedom struggle in Chhattisgarh)

छत्तीसगढ़ में राष्टीय आंदोलन व स्वधीनता संग्रम्मी छत्तीसगढ़ का योगदान (Contribution of national movement and freedom struggle in Chhattisgarh)


1. सोनाखान का विद्रोह (1856)


छत्तीसगढ़ में राष्टीय आंदोलन व स्वधीनता संग्रम्मी छत्तीसगढ़ का योगदान (Contribution of national movement and freedom struggle in Chhattisgarh)
सोनाखान की जमीदारी की स्थापना रतनपुर के शासक बाहरसाय के कार्यकाल में बिसाई ठाकुर बिंझवार ने सैन्य सेवाओं के बदले में करमुक्त प्राप्त भूभाग से सन 1490 में कई थी| सन 1818 में सोना खान जमीदारी पर अंग्रेजों का प्रशासनिक नियंत्रण स्थापित हुआ| इस कारण अंग्रेजों ने दुराग्रहवश सोनाखान के प्रति आर्थिक शोषण की नीति का अनुगमन किया और जमीदारी से अंग्रेजो को कुछ भी नहीं देने का फैशला किया|

1856 में इस क्षेत्र में भीषण अकाल पड़ा |लोगों की रक्षा के लिए वीर नारायण सिंह ने कसडोल के एक व्यपारी माखन के गोदाम का अनाज लूटकर अपनी भूखी जनता में बाँट दिया | जमीदार के इस कृत्य को कानून विरोधी समझा गया तथा उस पर लूटपाट और डकैती का  आरोप लगाकर रायपुर जेल में डाल दिया गया

10 माह 4 दिन तक जेल में रहने के बाद रायपुर स्थित 3री देशी रेजिमेंट के सैनिकों के सहयोग से वीरनारायण सिंह जेल से भाग निकले|फिर नारायण सिंह सोनाखान पहुचे और  वहां उन्होंने अपने नेतृत्व में 500 सैनिकों की सेना तैयार की| परन्तु देवरी के जमीदार महाराजसाय के मुखबिरी करने के स्मिथ की सेना ने नारायण सिंह को गिरफ्तार कर लिया और पुनः रायपुर जेल में डाल दिया गया| उन पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया|

10 दिसंबर 1857 को वीर नारायणसिंह को रायपुर स्थित “जय स्तम्भ चौक” में फांसी दे दिया गया|

वीर नारायण सिंह छत्तीसगढ़ अंचल में स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम शहीद थे|


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2. सुरेंद्र साय का विद्रोह(1857)

सुरेंद्र साय सम्बलपुर के विद्रोही जमीदार थे| 1857 में उन्होंने रायपुर में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया ,अंग्रेजों से लोहा लेते हुय सुरेंद्र साय रायपुर जेल तक आ पहुंचे | इसी समय वीर नारायण सिंह के पुत्र गोविंद सिंह ने सुरेंद्र साय के सहयोग से देवरी के जमीदार महाराज साय  की हत्या कर दी|

23 जनवरी 1864 को अंग्रेजो सुरेंद्र साय को पकड़कर  असीर गढ़ के किले में कैद कर लिया| 28 फरवरी 1884 को सुरेंद्र साय की मृत्यु हो गई| सुरेंद्र साय छत्तीसगढ़ में स्वतंत्रता आंदोलन के अंतिम शहीद कहलाते हैं|

सुरेंद्र साय को छत्तीसगढ़ का तात्या टोपे कहा जाता हैं। 

रायपुर का सैन्य विद्रोह (1858)
18 जनवरी 1858 को रायपुर स्थित तीसरी सेना के मैग्जीन लश्कर हनुमान सिंह ने सार्जेंट मेजर सिडवेल की हत्या कर दी और विद्रोह का प्रारम्भ किया |

हनुमान सिंह अंततः फरार हो गए और अंग्रेज उन्हें कभीभी गिरफ्तार न कर सका|

हनुमान सिंह को छत्तीसगढ़ का मंगलपांडे कहा जाता है|


4. छत्तीसगढ़ में होमरूल आंदोलन (1960)

बाल गंगाधर तिलक एनी बिसेन्ट ने होमरूल लीग की शाखायें मध्यप्रान्त में खोलीं| रायपुर में इसकी स्थापना प.रविशंकर शुक्ल ने की | लक्ष्मणराव उदयगिरि, मूलचंद बागड़ी,व माधवराव सप्रे उनके सहयोगी थे |

बिलासपुर में सक्रिय कार्यकर्ता ई.राघवेंद्रराव ,अम्बिकाप्रशाद वर्मा,गजाधर साय, मुन्नीलाल स्वामी,व गोविंद प्रशाद तिवारी थे| राजनांदगांव में ठा. प्यारेलाल सिंह, तथा दुर्ग में घनश्याम सिंह गुप्त ने इसकी शाखायें खोलकर होमरूल आंदोलन चलाया|


5. बी.एन. सी. मिल मजदूर हड़ताल(1920)

इसकी स्थापना राजनांदगांव में हुआ और इसका नेतृत्व  ठाकुर प्यारे लाल कर रहे थे |

ये हड़ताल लगभग 36  दिनों तक चली थी| मजदूर आंदोलन के इतिहास में ये पहली और सबसे लंबी हड़ताल थी|

इस आंदोलन के सिलसिले में प्रसिद्ध श्रमिक नेता वी.वी.गिरी राजनांदगांव आये| इस आंदोलन का मुख्य कारण मजदूरों का शोषण, कम वेतन पे ज्यादा काम लेना था|

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6. कण्डेल नहर सत्याग्रह (1920)


इसे भारत का द्वितीय बारदोली कहा जाता है| यह कंडेल ग्राम कुरुद  तहसील धमतरी में आता है|

इस आंदोलन के नेतृत्व कर्ता है -छोटेलाल श्रीवास्तव ,प.सुंदर लाल शर्मा, नारायण राव मेघवाल

कंडेल ग्राम के निकट अंग्रेजों ने रुद्री मॉडम सिल्ली नामक जगह पर बांध बनवाये| इन बांधो पर नहर का निर्माण  किया गया | सरकार हर से सिंचाई हेतु किसानों से 10 वर्षीय अनुबंध करना चाहती थी |इसके किये अंग्रेजों ने बलपूर्वक कर व जुर्माना वसूलने  की कार्यवाही शुरू कर दी| इसके विरोध में किसानों ने सत्याग्रह आरंभ कर दिया| इसी दौरान प.सुंदरलाल शर्मा के निवेदन पर गांधी जी 20दिसम्बर 1920 को कंडेल नहर सत्याग्रह में भाग लेने प्रथम बार छत्तीसगढ़ आये| मौलाना सौकत अली भी ग़ांधी जी के  साथ आये थे|

ग़ांधी जी के आने की सूचना पाकर  सरकार की सक्रियता में वृद्धि आई| आंदोलन के देशव्यापी हो जाने के भय से ग़ांधी जी के यहाँ आने के पूर्व ही सरकार ने किसानो की पूर्ण राशि माफ् करने की घोषणा की तथा आंदोलन सफलता पूर्वक समाप्त हो गया| यह छत्तीसगढ़ का प्रथम सफल सत्याग्रह था|



7. असहयोग आन्दोन (1920)


छत्तीसगढ़ में इस आंदोलन की प्रगति हेतु सरकारी पद व सम्मान तथा उपशियों का त्याग ,वकालत सेवा का त्याग, विदेशी वस्तुओ का बहिष्कार,शिक्षण संस्थानों का बहिष्कार, राषटीय विधालयो की स्थापना ,पंचायती अदालतों के गठन, चुनाव का बहिष्कार, आदि कार्य प्रमुखता से किये|

छत्तीसगढ़ से इस  अधिवेशन में भाग लेने वालों में रायपुर से प.सुंदरलाल शर्मा ,प.रविशंकर शुक्ल, वामनराव लाखे ,ठाकुर। प्यारे लाल सिंह ,धमतरी से नारायण राव  मेघावले, नत्थुजी जगतपाल ,बाबू छोटेलाल,नारायण राव दीक्षित,बिलासपुर से ई. राघवेंद्र राव ,ठाकुर छेदीलाल आदि प्रमुख थे|

असहयोग आंदोलन के दौरान वामनराव लाखे ने  राय साहब की उपाधि त्याग दी |इसके बदले जनता ने उन्हें लोकप्रियता की उपाधि से सम्मानित किए |बाजीराव कृदंत को भी लोकप्रियता की उपाधि से अम्मानित किया गया|

बैरिस्टर कल्याणजी मोरारी थेकर तथा सेठ गोपीकिशन ने अपनी राय साहब की उपाधि त्याग दी| काजी शम शेरखां ने अपनी “खान साहब” की उपाधि त्याग दी|

ठाकुर [यरेलाल सिंह ,ई. राघवेंद्र राव ,बैरिस्टर छेदीलाल,डी. के.मेहता ने वकालत त्याग दिया|

रायपुर में माधव राव सप्रे, धमतरी में छोटेलाल श्रीवास्तव ,राजनांदगांव में ठाकुर प्यारे लाल सिंह द्वारा राष्टीय विधालयो की स्थापना की गई|

बविलासपुर से यदुनंदन प्रसाद श्रीवास्तव, बद्रीनाथ साव|

1921 में  डॉ. राजेन्द्र प्रसाद,सी राजगोपालाचारी, सुभद्रा कुमारी चौहान, सेठ जमुनालाल बजाज आदि नेताओ ने छत्तीसगढ़ की यात्रा की |

12 मार्च 1921 को बिलासपुर के शनिचरी पड़ाव में कर्मवीर पत्रिका के सम्पादक माखनलाल चतुर्वेदी का ओजस्वी भाषण हुआ , जिसके लिए उन्हें 12 मई 1921 में राजद्रोह के आरोप में जबलपुर में ग्रिफ्तार कर बिलासपुर जेल लाया गया|इस दौरान बिलासपुर जेल में ही “पूरी नही सुनोगे तान”, पुष्प की अभिलाषा”, “पर्वत की अभिलाषा” आदि काव्य का सृजन किया|

1921 में प. सुंदरलाल शर्मा  ने रायपुर में सत्यग्रह आश्रकम की स्थापना की|


8. सिहावा नगरी जंगल सत्याग्रह(1922)


इसके प्रणेता – प. सुंदरलाल शर्मा व नारायणराव मेघावले थे|

इस स्थान पर वन अधिकारियों द्वारा आदिवासी जनता का शोषण किया जाता था|ये अधिकारी अदिवशियों को कम दरों में मजदूरी देते थे तथा बेगारी लिया करते थे|इसके विरोध में आरक्षित क्षेत्र की लकड़ी काटकर विरोफह किया गया था|


9. स्वराज दल(1923)


छत्तीसगढ़ क्षेत्र में प. रविशंकर शुक्ल ई. राघवेंद्र राव, बैरिस्टर छेदीलाल व शिवदाश डागा  ने  प्रांतीय कांग्रेश कमेटी छोड़कर स्वराज पार्टी का समर्थन करना प्रारम्भ कर दिया | 1923 में मध्य प्रान्त के की व्यवस्थापिका सभा का चुनाव हुए  जिसमे 70 स्थानों में से 43 स्थान पर स्वराज दल ने जीत हासिल की |छत्तीसगढ़ से से ई. राघवेंद्र राव तथा प. रविशंकर निर्वाचित हुए|

1925 में चितरंजन दास की मृत्यु के पश्चात  छत्तीसगढ़ में स्वराजदल में फुट पड़ गयी| बाद में ई. राघवेंद्रव तथा  ठाकुर छेदीलाल पुनः कांग्रेश में वापस आ गए|


10. झंडा सत्याग्रह (1923 नागपुर)


इस सत्याग्रह में प. रविशंकर शुक्ल ने इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया था|

11. कांग्रेसः का  काकीनाडा अधिवेशन (1923 आंध्रप्रदेश)


इस  आधिवेसन के दौरान रायपुर और धमतरी से  कार्यकर्ता बड़ी संख्या में काकीनाडा जाने को तैयार हुए |चूंकि यहां से बस्तर होते हुए काकीनाडा की दूरी कम पड़ती है अतः लोगो ने धमती के नारायणराव मेघावले के नेतृत्व में बस्तर के दुर्गम धेत्रों से काकीनाडा की पैदल यात्रा की|

12. सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930)


इस आन्दोलन के दौरान प. रविशंकर शुक्ल ने रायपुर में हाइड्रोक्लोरिक एसिड और सोडे से नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा| धमतरी में नारायण राव मेघावले ने नमक कानून का उलंघन किया|

बिलासपुर में इस आन्दोलन का  नेतृत्व दिवाकर  कर्लिंगन ने किया|

बिलासपुर में वासुदेव देवरस द्वारा वानर सेना का गठन किया |

रायपुर में बालक बलिराम आजाद के द्वारा वानर सेना का गठन किया गया| यतीयत्नलाल जैन इसके संचालक थे|

इस दौरान छत्तीसगढ़ के विभिन स्थानों पर जंगल सत्याग्रह का आयोजन किया गया|


13. गट्टासिल्ली जंगल सत्याग्रह( 1930)


यह सत्याग्रह धमतरी में की गई तथा इसके नेतृत्व कर्ता नारायणराव मेघगवले ,नत्थुजी जगतपाल , बाबू छोटेलाल  श्रीवास्तव|

14. गांधी जी का द्वितीय छत्तीसगढ़  यात्रा(1933)


हरिजन उत्थान के उद्देश्य से 22 – 28 नवम्बर 1933 तक गांधीजी का छत्तीसगढ़ में द्वितीय आगमन रहा| इस दौरान गांधीजी ने रायपुर ,धमतरी ,भाटापारा, एव बिलासपुर की यात्रा की |


गांधी जी के साथ इस दौरे  में कुमारी मीरा बेन, ठक्कर बापा तथा महादेवव देसाई थे|

गांधीजी ने तत्कालिक विक्टोरिया  गार्डन ( वर्तमान मोतीबाग) में स्वदेशी प्रदर्शनी का उद्घाटन किया|

रायपुर जिले के गांधी जी के इस प्रवास में उनसे प्रभावित होकर प. रामदयाल तिवारी ने गांधी मीमांसा लिखना प्रारंम्भ किया|

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का द्वितीय छत्तीसगढ़ आगमन – 1935

प. जवाहर लाल नेहरू का रायपुर आगमन – 1935

बरार का मध्य प्रान्त में विलय – भारत शासन अधिनियम 1935 के तहत

1936 में ई. राघवेंद्र राव मध्यप्रान्त का एवं बरार के अस्थाई गवर्नर नियुक्त हुए| वे गवर्नर के पद पर नियुक्त होने वाले छत्तीसगढ़ के पहले व्यक्ति थे|


15. रायपुर डायनामाइट कांड


इस  कांड के तहत कुछ क्रांतिकारी युवको ने राजबंदियों को मुक्त  कराने के लिये रायपुर जेल की दीवारों को डायनामाइट से उड़ा देने की योजना बनाई थी|

इस कांड में बिलखनारायण अग्रवाल ,नागरदास बावरिया, नारायण दास राठौर एव जय प्रकाश प्रमुख थे|


16. भारत छोड़ो आंदोलन (1942)

बम्बई में हुई इस  अधिवेशन में  छत्तीसगढ़ से प. रविशंकर शुक्ल ,बैरिस्टर छेदीलाल, लक्ष्मीनारायण दास ,यतीयतन लाल जैन ,शिवदास डागा. घनश्याम सिंह गुप्त आदि थे| साथ ही द्वारका प्रशाद मिश्र , रामगोपाल तिवारी,कुंजबिहारी अग्निहोत्री,आदी कुछ नेताओं ने भाग लिया| बम्बई से वापस आते वक्त मध्य प्रांत के सिमा पर मलकपुर में इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया|

यशवंत सिंह ठाकुर द्वारा दुर्ग नगर पालिका भवन को आग लगा दिया गया|

17. स्वतंत्रता प्राप्ति(1947)

15 अगस्त को प्रातः मध्यप्रान्त और  बरार के प्रथम मुख्यमंत्री प. रविशंकर शुक्ल ने राजधानी नागपुर के सीताबर्डी के किले पर तिरंगा फहराया|
रायपुर में आर. के. पाटिल ने, दुर्ग में घनश्याम सिंह गुप्त ने एवं बिलासपुर में प. रामगोपाल तिवारी ने ध्वजारोहण किया|

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