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    31 August 2019

    बौद्ध धर्म का इतिहास और महत्वपूर्ण तथ्य(History and important facts of Buddhism)

    बौद्ध धर्म का इतिहास और महत्वपूर्ण तथ्य( History and important facts of Buddhism)
     यह है कि  ईसाई धर्म और इस्लाम धर्म के बाद बौद्ध धर्म दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है, इसके संस्थापक महात्मा बुद्ध शाक्य मुनि (गौतम बुद्ध) थे | इस टॉपिक में हम भगवान गौतम बुद्ध के जीवन के बारे में अध्ययन करेंगे| उनके जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण बातों के बारे में जानेंगे|


    बौद्ध धर्म का इतिहास और महत्वपूर्ण तथ्य(History and important facts of Buddhism)

    बौद्ध धर्म  -   बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध  थे इनका  वास्तविक नाम सिदार्थ  था| इनका जन्म 563 ई.पु. में  लुम्बिनी (कपिलवस्त) नेपाल  में हुआ | इनके पिता का नाम  शुद्रोधन था ( शुद्रोधन शाक्य गणराज्य के प्रधान  थे  इस लिय  गौतम बुद्ध को शाक्य मुनि भी कहा जाता था|) गौतम बुद्ध के  माता का नाम महामाया थी( जिनके गौतम बुद्ध के जन्म के 7 वें दिन देहांत हो गया था|)

                                                     गौतम बुद्ध  का  पालन पोषण  इसकी मौसी महाप्रजापति गौतमी ने की जिससे बुध के पिता शुद्रोधन ने विवाह किया| महाप्रजापति गौतमी बौद्ध धर्मं में प्रवेश पाने वाली प्रथम महिला थी|  जब भगवान गौतम बुद्ध 16 वर्ष के थे तब इनका विवाह यशोधरा नामक युवती के कर दिया गया था|जिसके  परिणाम स्वरूप एक पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम राहुल था | गौतम जी ने सत्य की खोज करने की लिए 29 वर्ष की आयु में गृह त्याग किया  जिसे महाभिनिष्क्रमण कहा जाता है|
    सन्यासी होने के बाद गौतम जी साधना में लीन हो गए | बुध ने आलार कलाम(वैशाली) एवं उद्रक रामपुत्त (राजपुत्र) से योग साधना और समाधिस्थ होना सिख|


    बुद्ध ने गया जाकर वट बृक्ष के नीचे निरंजना नदी के तट पर लगातार सात दिन व  सात रात निर्विघ्न तपस्या की | आठवें दिन वैशाख पूर्णिमा के दिन  उन्हें ज्ञान की प्राप्ति  हुई  तब बुद्ध की आयु 35 वर्ष थी | इस ज्ञान की प्राप्ति से उनका सम्पूर्ण शरीर प्रकाशमान हो गया, उन्हें सम्बोधि की प्राप्ति हुई|+ परिणाम स्वरूप  वे “तथागत “ तथा “बुद्ध” कहलाये|  बोध प्राप्ति के  कारण गया “बोध गया” तथा वैट बृक्ष जिसके नीचे ज्ञान की  प्राप्ति हुई “बोधि बृक्ष “ कहलाया| भारत मे  बौद्ध धर्म को मानने वालों की कुल संख्या 0.80 % है|


    गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश “सारनाथ” में दिया| बौद्ध साहित्य में इस घटना को “धर्मचक्र प्रवर्तन” कहा गया है|


    बुध की मृत्यु 80 वर्ष की उम्र में 483 ई.पु.  में कुशीनारा (गोरखपुर के समीप) में  हुआ| इस घटना को बौद्ध धर्म मे “महापरिनिर्वाण” कहा जाता है|


    बुध के जीवन से सम्बंधित प्रमुख प्रतीक/ बौद्ध धर्म के प्रतीक
    जन्म का प्रतीक – कमल
    यवन का प्रतीक -सांड
    गर्भ का प्रतीक – हाथी
    महाभिनिष्क्रमण (ग्रह त्याग ) का प्रतीक -घोड़ा
    सम्बोधि (ज्ञान प्राप्ति) का प्रतीक – बोद्धि बृक्ष
    धर्म चक्र परिवर्तन (प्रथम वचन) का प्रतीक -चक्र
    महापरिनिर्वाण(मृत्यु ) का प्रतीक- स्तूप
    निर्वाण – पदचिन्ह
    बुध का जन्म ,ज्ञान प्राप्ति तथा मृत्यु बैशाख पूर्णिमा के दिन हुआ था|


    बुध के जीवन को प्रभावित करने  वाले चार प्रमुख तथ्य –
    1. बृद्ध व्यक्ति
    2. रोगग्रस्त व्यक्ति
    3. मृत व्यक्ति
    4. सन्यासी

    बौद्ध धर्म का विश्वकोश – महाविभाष सूत्र (संकलन – वसुमित्र/संस्कृत की प्रथम पुस्तक)
    बौद्धों का रामायण – बुद्धचरित (लेखक- अश्वघोष)
    बौधों को गीता – धम्मपंथ
    बौद्ध धर्म के संप्रदाय – हीनयान एवं महायान
    महायान -    महायान मतावलंबी बुद्ध को अलौकिक शक्तियों से युक्त मानकर उनकी भव्य प्रतिमा बनाकर उनकी पूजा अर्चना करते थे|
    जबकि हीनयान मतावलंबी  बुद्ध को मनुष्य और बौद्ध  धर्म का प्रवर्तक मानते थे |ये बुद्ध की शिक्षाओं को ग्रहण करने पर बल देते थे|
    कालांतर में वज्रयान नामक एक नवीन सम्प्रदाय का उदय हुआ ,जिसके  पालक भैरविचक्र के संस्कार  के रूप में मंदिर,मांस,स्त्री सम्भोग,और मंत्रोचारण का पालन करते थे|



    बौद्ध धर्म का इतिहास और महत्वपूर्ण तथ्य(History and important facts of Buddhism)

    हीनयान बौद्ध साहित्य पाली भाषा एवं महायान बौद्ध साहित्य संस्कृत भाषा मे है|



    बौद्ध धर्म ग्रंथ – सर्वप्रमुख धर्मग्रंथ त्रिपिटक है, जिसके तीन ग्रंथ समूह आते है-

    1. विनय पिटक –

     इसका संकलन प्रथम बौद्ध संगीत में किया गया है| इसमे बौद्ध भिक्षुओं के अनुशासन के नियम हैं|


    2. सुत्त पिटक – 

    इसके अंतर्गत बुध की  शिक्षाओं का वर्णन किया गया है|इसे भी प्रथमसँगीत में संकलन किया गया है| यह दीर्घ निकाय, संयुक्त निकाय,अंगुत्तर निकाय,एवं खुंदक निकाय का भाग है|जातक निकाय खुंदक निकाय का ही भाग है, जिसमे बौद्ध के  पुनर्जन्म की  कथाओं का वर्णन है|


    3. अभिधम्म पिटक -  

    इसे तृतीय संगीत में संकलित किया गया है| इसमे बुध्द के उपदेशों का वर्णन किया गया है|



    बौद्ध धर्म का सिद्धांत


    1.चार आर्य सत्य – जीवन केई समस्याओं से निजात पाने हेतु बुध  ने चार आर्य सत्यों का  वर्णन किया है , जिन्हें मनुष्य भलीभांति समझकर निर्वाण प्राप्त कर सकता है|


    दुःख – यह संसार दुखमय है|जरा ,मृत्यु, रुग्णता आदि दुख ही है| जीवन का प्रत्येक अंश दुख से भरा पड़ा है|


    दुःख  का कारण(समुदाय) – बुद्ध के अनुसार दुख का कारण अवैधा और तृष्णा या इच्छा है|


    दुख निरोध – दुखों से छुटकारा पाने हेतु आवश्यक है कि मनुष्य अविघा प्रेरित इच्छाओं का नाश करे अर्थात राग,द्वेष ,काम आदि का दमन करे|


    दुख निरोध मार्ग -  दुखों के नाश हेतु बुध ने जो मार्ग बताया है , वह है दुख निरोधी गामिनी प्रतिपदा के नाम से जाना जाता है| इसके आठ अंग है अतः इसे अष्टांगिकमार्ग कहा जाता है|

    बौद्ध धर्म का इतिहास और महत्वपूर्ण तथ्य(History and important facts of Buddhism)


    2. अष्टांगिक मार्ग – बुद्ध न दुखों से  मुक्ति  हेतु आठ मार्गों का अनुसरण करने का उपदेश दिया है-


    1. सम्यक स्मृति – उचित वस्तुओं  एवं तथ्यों  का सदैव स्मरण  लोभ चित्त के संतापों से बचना|


    2. सम्यक दृष्टि – उचित  दृष्टिकोण रखना |सत्य- असत्य,उचित-अनुचित,पाप-पूण्य,सदाचार-दुराचार में अंतर रखना|


    3. सम्यक वचन-  सत्य, मृदु और विनम्र वचन बोलना|


    4. सम्यक संकल्प- 

    धर्म पालन हेतु दृढ़ संकल्प करना अर्थात हिंसा ,राग-द्वेष,आदि का त्याग एवं आत्म कल्याण का दृढ़संकल्प|


    5. सम्यक कर्म - 

     श्रेष्ठ कर्म करना | हिंसा, द्वेष, ईष्या ,दुराचरण का परित्याग एवम  सत्कर्मों का पालन|
    6. सम्यक व्यायाम – अच्छे कर्मों और उपकर के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहना|


    7. सम्यक आजीव –

     न्यायपूर्ण ढंग से जीवन यापन या न्यायोचित मार्ग से आजीविका अर्जित करना|


    8. सम्यक समाधि-  राग,द्वेष, और द्वंद विनाश से रहित  होकर चित को एकाग्र करना|

    3.मध्यम मार्ग ( मध्यम प्रतिपदा) – 

    महात्मा  बुद्ध ने दुखों से मुक्ति पाने के लिए जो अष्टांगी मार्ग बताया है ,वह विशुद्ध आचरण पर आधारित था| इसमें न तो अधिक शारीरिक कष्ट और  न अधिक कठोर तपस्या को उचित बताया है न अधिक भोगविलास जीवन को | मूल रूप से यह दोनों के बीच का  मार्ग है|इस  कारण इसे मध्यम  मार्ग कहा गया है |इसका सही रूप से पालन कर मनुष्य मोक्ष की ओर अग्रसर होता है|


    4. दस शील – 

    बौद्ध धर्म व्यक्ति को अपने आचरण सुधारने हेतु दस शीलों(नैतिक आचरणों) का उपदेश देता है-
    सत्य अहिंसा अस्तेय – चोरी न करना| अपरिग्रह – आवश्यकताओं से अधिक धन का संग्रहण न करना| ब्रह्मचर्य – भोगविलास से दूर रहना| सुगंधित पदार्थों का त्याग| असमय भोजन का त्याग| कोमल शैया का त्याग| राग,कामिनी,-कंचन का त्याग,नशा का त्याग| आमोद- प्रमोद का त्याग ,नृत्य का त्याग|


    5. वेदों की प्रमाणिकता में अविश्वास – इसलिए बौद्ध धर्म ईश्वर को सृष्टि का निर्माता नही मानता|


    6. अनात्मवाद – 

    बुद्ध ने न ये स्वीकर किया कि आत्मा है और न यह कि आत्मा नही है|बुद्ध ने आत्मा के संम्बंध में विवाद करने से इनकार कर दिया है|बुद्ध आत्मा को स्वीकारते तो मनुष्य को स्वयं अपने से आसक्ति हो जाता जो कि दुख का मूल कारण है|यदि वे  आत्मा को स्वीकारते तो मनुष्य यह विचार करता कि मनुष्य के बाद मेरा कुछ भी नही रहेगा, मानसिक वेदना से ग्रस्त रहेगा|इसी कारण वे इस विवाद में पड़ना नही चाहते थे|


    7. कर्मवाद – 

    बुद्ध के अनुसार जो मनुष्य जैसा कर्म करता है उसे वैसा ही फल भुगतना पड़ता है|वे मनुष्य के द्वारा मन,वचन, काया से की गई  चेष्टाओं को कर्म मानते थे| कर्म ही सुख व दुख का कारण है|


    8. पुनर्जन्म – बुद्ध इस बात को स्वीकार करते थे कि कर्मों के अनुसार ही पुनर्जन्म होता है|पुनर्जन्म अहंकार  का होता है आत्मा का नहीं| जिस मनुष्य की इच्छाएं व वासनाएँ नष्ट हो जाती है,वे मनुष्य पुनर्जन्म से मुक्त हो जाता है|


    9. अनीश्वरवाद – बौद्ध धर्म ईश्वर की सत्ता  पर  विश्वास  नहीं करता |


    10. क्षणिकवाद – 

    प्रकृति में उपस्थित प्रत्येक वस्तु क्षणभंगुर एवम परिवर्तनशील है तथा कुछ भी नित्य नही है| क्षणिकवाद की उत्पत्ति प्रतीत्य समुत्पाद से मानी जाती है|


    11. निर्वाण – 

    बौद्ध धर्म का चरम लक्ष्य निर्वाण प्राप्त करना है | निर्वाण का अर्थ है जन्म- मरण की स्थिति से मुक्ति अथवा मोक्ष की प्राप्ति| मानव मन से उतपन होने वाली इच्छा  या तृष्णा या वासना की आग को बुझा देने पर  ही निर्वाण की प्राप्ति संभव  है|


    12. प्रतीत्य समुत्पाद

     अर्थात प्रत्येक क्रिया के प्रतिक्रिया होती है| बौद्ध धर्म करणवादी है| प्रतीत्य का अर्थ है – इनके ने से  व समुत्पाद का अर्थ है यह उत्पन्न  होता है| दूसरे शब्दों में इसे “ कार्य-कारण नियम “ भी कहा जाता है|इससे  आशय है कि एक वस्तु की प्राप्ति पर दूसरे की उत्पत्ति,  दूसरी से तीसरी की उत्पत्ति|

    बौद्ध धर्म का इतिहास और महत्वपूर्ण तथ्य(History and important facts of Buddhism)

    13. बौद्ध धर्म के त्रिरत्न- बुद्ध, धम्म ,संघ

    14. बौद्ध धर्म के व्यक्ति पांच स्कन्धों से निर्मित बताया गया है-
    रूप
    वेदना
    संज्ञा
    संस्कार
    विज्ञान

    महत्वपूर्ण बिंदु-

    प्रथम संगीति में बुध के उपदेशों  लिपिबद्ध किया गया है तथा त्रिरत्न का उल्लेख है|
    द्वितीय संगीति में बौद्ध धर्म स्थविर और  महासाधिक नमक दो संप्रदायों में बंट गया | जो परम्परागत बौद्ध  के नियमों  को मानते थे वे स्थविर कहलाये तथा जो नियमो में परिवर्तन कर मानना चाहते थे वे महासाधिक कहलाये|
    बौद्ध धर्म का   हीनयान,महायान में विभाजन चतुर्थ संगीति में किया गया |
    अंगुलिमाल  बुद्ध के वचनों से प्रभावित होकर डाकू से सन्यासी हो गए|
    चंदना – बुद्ध को खीर में सुअर का मांस मिलाकर दे दिया ,जिससे उदर में खराबी आने के कारण मृत्यु हो गयी|
    बुध ने सर्वाधिक उपदेस श्रावस्ती में दिए|





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