छत्तीसगढ़ के लोक गीत लोक नृत्य || chhattisgarh ke lokgeet aur Lok Nritya
छत्तीसगढ़ में लोक गायन की अविच्छिन्न परम्परा विद्यमान है। लोक गायक परम्परागत गाथाओं, और संस्कारिक गीतों नृत्य गीतों एवं पर्वों से जुड़े गीतों का गायन करते हैं। अंचल के अनुसार ही छत्तीसगढ़ के लोक गीत भी अलग-अलग हैं। उस अंचल के प्राचीन रहन-सहन, रीति-रिवाज का परिचय इन लोक गीतों के माध्यम से ही मिलता है। लोक गीतों का सम्बन्ध बहुत कुछ पुरानी चली आ रही परम्पराओं पर ही आधारित होता है। छत्तीसगढ़ में पाये जाने वाले प्रमुख लोक गीत निम्नलिखित हैं :
करमा गीत :
यह छत्तीसगढ़ के आदिवासियों का मुख्य लोकगीत है। करमा नृत्य के साथ गाये जाने वाले गीत को करमा गीत के नाम से जाना जाता है।
गम्मत गीत:
यह गीत राज्य में गणेश महोत्सव के समय गाया जाता है। इस गीत में देवी-देवताओं की स्तुति की जाती है।
गौरा गीत :
यह महिलाओं द्वारा नवरात्रि के समय माँ दुर्गा की स्तुति में गाया जाने वाला लोक गीत है।
घोटुल पाटा :
छत्तीसगढ़ के अनेक आदिवासी क्षेत्रों में मृत्यु गीत गाने की परम्परा है। मृत्यु के अवसर पर मुड़िया आदिवासियों में घोटुल-पाटा के रूप में इसकी अभिव्यक्ति होती है।
इसे बुजुर्ग व्यक्ति गाते हैं जो मुख्यतः राजा जोलोंग साय की कथा के साथ प्रकृति के अनेक जटिल रहस्यों के समाधान प्रस्तुत करते हैं। जंवरा गीत यह नवरात्रि के समय गाया जाने वाला माता का गीत है।
ढोलकी गीत:
ढोलक बजाकर केवल महिलाओं द्वारा गाए जाने वाले इस लोक गीत में भगवान राम और श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया जाता है।
ढोलामारू :
यह मूलतः राजस्थान की लोकगाथा है, परन्तु यह सम्पूर्ण उत्तर भारत में प्रचलित है। मध्य प्रदेश के मालवा, निमाड़ तथा छत्तीसगढ़ के बुंदेलखंड में इसे गाया जाता है।
इसमें ढोला और मारू के प्रेम कथा को चमत्कार ग्रामीण यंत्र-तंत्र की रहस्यात मकता के साथ लोक शैली में गाया जाता है। छत्तीसगढ़ में ढोलामारू को प्रेम गीत के रूप में देखा जाता है।
छत्तीसगढ़ी ढोलामारू कथा में मारू का वर्णन अधिक होता है। ढोलामारू की प्रेमकथा का त्रिकोणात्मक पहलू कथा को रोमांचकारी बनाता है। कथा में स्थानीय छत्तीसगढ़ी संस्कृति के रंग भी उपस्थित होते हैं। लामाका
ददरिया :
यह मूलतः एक प्रेम-गीत है जिसमें शृंगार की प्रधानता होती है। ददरिया दो-दो पंक्ति के स्फुट गीत होते हैं, जो लोक गीति-काव्य के श्रेष्ठ उदाहरण होते हैं। ददरिया गीत स्त्री और पुरुष मिलकर अथवा अलग-अलग भी गाते हैं।
जब स्त्री और पुरुष गाते हैं तब ददरिया सवाल-जबाब के रूप में गाया जाता है। स्त्रियों के दो दल भी संवादात्मक ददरिया गा सकते हैं। ददरिया की लोकधुन इतनी लोकप्रिय और मधुर होती है कि कोई व्यक्ति उसे आसानी से गा सकता है।
हर ददरिया को उसकी दूसरी पंक्ति के अंतिम शब्द अथवा स्वर को पकड़कर गाया जाता है, जिसे 'छोर' कहते हैं। ददरिया किसी भी समय गाया जा सकता है। महुआ बीनते हुए, धान रोपते हुए, धान काटते हुए, राह में चलते हुए, चक्की पीसते हुए आदि कभी भी किसी समय ददरिया गीत गाए जा सकते हैं। ददरिया गीतों का विषय जीवन की कोई बात हो सकती है जिसमें युवा मन के प्रेम शृंगार की चर्चा हो।
दहकी गीत:
यह होली के अवसर पर अश्लीलतापूर्ण परिहास में गाया जाने वाला लोक गीत है।
देवार गीत :
राज्य की देवार जाति में गाया जाने वाला यह नृत्य गीत लोक कथाओं पर आधारित होता है।
धनकुल:
यह बस्तर क्षेत्र का प्रमुख लोक गीत है।
नगमत गीत :
नागपंचमी को गाए जाने वाले इस लोक गीत को गुरु की प्रशंसा के साथ ही नाग-देवता का गुणगान तथा नाग दंश से सुरक्षा की गुहार में गाया जाता है।
पण्डवानी :
छत्तीसगढ़ का यह विश्वप्रसिद्ध लोक गीत महाभारत के विभिन्न वीरता प्रसंगों पर आधारित है। गायक तम्बूरा लेकर गाता है तथा साथ ही साथ वह अभिनय भी करता है।
गायक के अन्य कलाकार साथी वाद्य यंत्रों की सहायता से सुरताल के संयोजन के साथ मुख्य गायक के साथ गाते भी हैं, और गीत के बीच-बीच में हुंकार भी भरते रहते हैं।
पंथी गीत :
यह छत्तीसगढ़ के सतनामी जाति का परम्परागत नृत्य गीत है। गुरु घासीदास के पंथ से पंथी नाच का नामकरण हुआ है। विशेष अवसरों पर सतनामी 'जैतखाम' की स्थापना करते हैं और उसके आस-पास गोल घेरे में नाचते-गाते हैं।
इसकी शुरुआत देवताओं की स्तुति से होती है। गायन का प्रमुख विषय गुरु घासीदास का चरित्र होता है। पंथी नृत्य में आध्यात्मिक संदेश के साथ मानव जीवन की महत्ता भी होती है। मिलाप
बरूआ गीत उपनयन संस्कार के समय गाए जाने वाले गीत को बरूआ गीत कहा जाता है। इस गीत के द्वारा बरूआ अपने सगे सम्बन्धियों से भिक्षा की याचना करता है।
बार नृत्य गीत:
यह कंवर जनजाति का नृत्य गीत है।
बारहमासी गीत:
इस गीत को गाने की शुरुआत प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ माह में होती है। इस गीत में प्रत्ततुओं का वर्णन एवं उसकी महिमा व्यक्त की जाती है।
बांस गीत:
यह मूलतः एक गाथा गायन है जिसमें गायक रागी और वादक होते हैं। इसमें गाथा गायन के साथ मोटे बांस के लगभग एक मीटर लम्बे सजे-धजे बांस नामक वाद्य का प्रयोग होता है।
इसी कारण इसे बांस गीत कहा जाता है। इस गीत में गान के बीच में बांस के वाद्य को बजाया जाता है, जिसे फूंकने से भारी भोंभों की आवाज निकलती है, जो संगीत के साथ कथा का माहौल बनाती है।
बांस की खुरदरी किन्तु प्रभावी आवाज का अपना ही प्रभाव है। छत्तीसगढ़ में इसे प्रायः राऊत जाति के लोग गाते हैं। इसके माध्यम से करूण गाथा गायी जाती है। बांस गीत की कथाओं में सितबसन्त, मोरध्वज, कर्ण कथा आदि प्रमुख हैं।
बिरहा :
यह बुन्देलखंड का प्रतिनिधि नृत्य गायन है। यह नृत्य बघेलखंड की लगभग सभी जातियों में प्रचलित है। इसका कोई निश्चित समय नहीं होता है। किन्तु गोंड एवं बैगा आदिवासियों में बिरहा गाने की प्रथा विवाह एवं दीपावली के अवसर पर देखी जाती है।
यह एक शृंगारपरक बिरह गीत है। बिरहा में प्रायः लड़की के विरह का वर्णन होता है। यह प्रश्न पूछने के अंदाज से ऊंची टेर लगाकर गाया जाता है। बिरहा प्रायः पुरुषों द्वारा व कभी-कभी स्त्री-पुरुष दोनों गाते हैं।
इस अवस्था में स्त्री-पुरुषों के मध्य सवाल-जबाब होता है, साथ-ही-साथ नृत्य किया जाता है। बारात में बिरहा गाने की होड़ देखी जा सकती है।
बिलमा गीत:
यह बैगा जनजाति का मिलन नृत्य गीत है।
बैना गीत:
तंत्र-मंत्र के संदर्भ में गाया जाने वाला यह लोकगीत देवी-देवताओं की स्तुति में उन्हें प्रसन्न करने के लिए गाया जाता है।
भड़ौनी गीत:
यह विवाह के समय हंसी-मजाक करने के लिए गाया जाने वाला लोक गीत है। भरथरी गीत भरथरी एक लोकगाथा है। इसमें राजा भरथरी और रानी पिंगला की कथा का गायन होता है।
भरथरी के शतक और उनकी कथा ने लोक में पहुंचकर एक नई ऊर्जा और जीवंतता प्राप्त की है। छत्तीसगढ़ में भरथरी गायन की परम्परा बहुत पुरानी है, जो एक लोक गायन शैली के रूप में प्रतिष्ठित है। भरथरी गायन प्रायः नाथपंथी गायक करते हैं।
सारंगी या इकतारे पर भरथरी गाते हुए योगियों को अक्सर देखा जाता है, लेकिन छत्तीसगढ़ में भरथरी गायन के इस रूप के अलावा महिला कण्ठों के माध्यम से इसने काव्यात्मक और संगीतिक धरातल पर एक नया रूप और रंग ग्रहण किया है।
श्रीमती सुरूज बाई खांडे भरथरी-गाथा गायन की शीर्ष लोक गायिका है। श्रीमती सुरूज बाई खांडे की गायन-शैली में एक मौलिक स्वर माधुर्य और आकर्षण मौजूद है।
राऊत गीत:
छत्तीसगढ़ की राऊत जाति स्वयं को भगवान श्रीकृष्ण का वंशज मानती है । गोवर्धन पूजा के दिन इनका एक नृत्य गीत प्रारंभ होता है जिसे राऊत गीत कहते हैं।
रीना नृत्य गीत:
यह गोंड तथा बैगा जनजातियों की महिलाओं द्वारा दीपावली के समय गाया जाने वाला लोक गीत है।
रैला गीत:
यह मुरिया जनजाति का प्रमुख लोक गीत है।
लेजा गीत :
यह बस्तर के आदिवासी बहुल क्षेत्र का प्रमुख लोक गीत है।
लोरिक चंदा:
यह उत्तर भारत की लोकप्रिय प्रेम लोकगाथा है। इसमें लोरिक और चंदा के प्रसंग को क्षेत्रीय विशिष्टता के साथ गाया जाता है। इसे छत्तीसगढ़ में चंदैनी गायन कहा जाता है। लोरिक की शैली भी मूलतः गाथात्मक है। लोरिक चंदा छत्तीसगढ़ में नृत्य गीत के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
यह नृत्य गीत रात भर चलता है। बीच-बीच में विदूषक जलती मशाल के साथ अपनी प्रस्तुति देते हैं। चंदैनी नृत्य में टिमकी तथा ढोलक की संगत की जाती है।
सुआ गीत:
यह गीत स्त्रियों के विरह को व्यक्त करता हुआ-सा प्रतीत होता है। इस गीत की प्रत्येक पंक्ति में स्त्रियां सुअना को सम्बोधित करते हुए अपनी आंतरिक वेदना को व्यक्त करती है।
सोहर:
जन्म संस्कार विषयक गीत को सोहर गीत कहा जाता है। यह गीत जन्मोत्सव के शुभ अवसर पर गाया जाता है।