कल्चुरि राजवंश का इतिहास (875–1741 ई.) | छत्तीसगढ़ का स्वर्णिम काल
छत्तीसगढ़ का वास्तविक इतिहास कल्चुरि राजवंश से शुरू होता है। जानिए (875–1741 ई.) तक शासन करने वाले कल्चुरि राजाओं के योगदान, प्रशासनिक ढाँचा, मंदिर निर्माण और साहित्यिक उपलब्धियाँ। प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए उपयोगी शॉर्ट ट्रिक्स ।
✨ परिचय
छत्तीसगढ़ के इतिहास में कल्चुरि राजवंश (875–1741 ई.) का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। इस वंश की स्थापना के साथ ही छत्तीसगढ़ का वास्तविक राजनीतिक इतिहास आरंभ हुआ। लगभग नौ शताब्दियों तक कल्चुरियों ने राज्य किया और अपनी राजधानी तुम्मान, रतनपुर और रायपुर से पूरे दक्षिण कोशल को समृद्ध और शक्तिशाली बनाया।
कल्चुरियों ने न केवल राजनीतिक स्थिरता प्रदान की बल्कि कला, साहित्य और धर्म को भी संरक्षण दिया। यही कारण है कि प्रतियोगी परीक्षाओं (CGPSC, Vyapam, UPSC आदि) में कल्चुरि काल से जुड़े प्रश्न बार-बार पूछे जाते हैं।
📌 कल्चुरि राजवंश : एक संक्षिप्त परिचय
कल्चुरि (हैहय) राजपूतों की कई शाखाएँ भारत के विभिन्न भागों में शासन करती थीं। छत्तीसगढ़ में इनकी दो प्रमुख शाखाएँ थीं –
- रतनपुर शाखा (मुख्य शाखा)
- रायपुर शाखा (गौण शाखा)
🏰 रतनपुर के कल्चुरि शासक (875–1741 ई.)
शासक | शासनकाल | विशेष योगदान |
---|---|---|
कलिंगराज | 1000–1020 ई. | दक्षिण कोशल को जीता, राजधानी तुम्मान बनाई |
कमलराज | 1020–1045 ई. | गागेयदेव का सहयोगी, उड़ीसा अभियान में शामिल |
रत्नदेव I | 1045–1065 ई. | रत्नपुर को राजधानी बनाया, नगर को "कुवेरपुर" कहा गया |
पृथ्वीदेव I | 1065–1090 ई. | "सकल कोसलाधिपति" की उपाधि, 21,000 गाँवों पर शासन, मंदिर व तालाब निर्माण |
जाजल्लदेव I | 1090–1120 ई. | स्वतंत्रता की घोषणा, सोने-ताँबे के सिक्के जारी, जाजल्लपुर बसाया |
रत्नदेव II | 1120–1135 ई. | त्रिपुरी व गंगवंश पर विजय, विद्या और कला का संरक्षण |
पृथ्वीदेव II | 1135–1165 ई. | चक्रकोट विजय, सर्वाधिक अभिलेख, बगीचे व मंदिर निर्माण |
जाजल्लदेव II | 1165–1168 ई. | त्रिपुरी आक्रमण विफल किया |
जगददेव | 1168–1178 ई. | प्रशासन को स्थिर किया |
रत्नदेव III | 1178–1198 ई. | अव्यवस्था के समय गंगाधर ब्राह्मण को प्रधानमंत्री नियुक्त किया |
अन्य परवर्ती शासक | 1198–1741 ई. | कई पीढ़ियों तक शांति और स्थिर शासन, सांस्कृतिक उन्नति |
🏰 रायपुर के कल्चुरि शासक (14वीं–18वीं सदी)
- 14वीं सदी में रतनपुर शाखा से विभाजन होकर रायपुर शाखा की स्थापना हुई।
- लक्ष्मीदेव व सिंघण ने नींव रखी।
- सिंघण ने 18 गढ़ जीते और स्वतंत्रता घोषित की।
- प्रमुख शासक – रामचन्द्र, ब्रह्मदेव, भुनेश्वरदेव, मानसिंहदेव, चामुण्डासिंहदेव, बंशीसिंहदेव आदि।
- अंतिम शासक – शिवराजसिंहदेव (1757 ई.)
⚖️ प्रशासनिक व्यवस्था
कल्चुरि काल में प्रशासन सुव्यवस्थित और व्यवस्थित था –
- राज्य → गढ़ → बारहों → गाँव
- मुख्य पदाधिकारी
- गढ़ का प्रधान = दीवान
- बारहों का प्रधान = दाऊ
- गाँव का प्रधान = गोटिया
- महाप्रमातृ = राजस्व विभाग का प्रधान
- पंचकुल संस्था = 5 सदस्यीय संस्था, गाँव-नगर दोनों में कार्यरत
🎭 सांस्कृतिक और धार्मिक योगदान
- धर्म – शैव धर्म प्रमुख, साथ ही वैष्णव संप्रदाय को भी संरक्षण।
- मंदिर निर्माण –
- पृथ्वीदेवेश्वर शिव मंदिर (तुम्मान)
- शिवरीनारायण विष्णु मंदिर (रतनपुर)
- विष्णु मंदिर (जांजगीर – 24 अवतारों की मूर्तियाँ)
- राजिम का राजीवलोचन मंदिर (जगतपाल द्वारा जीर्णोद्धार)
- साहित्य –
- राजशेखर – 'काव्य मीमांसा', 'कर्पूरमंजरी'
- कवि गोपाल चन्द्र मिश्र – 'छत्तीसगढ़ का वाल्मीकि'
- गोपाल कवि – "खूब तमाशा", "सुदामा चरित"
- भक्ति आंदोलन – महाप्रभु वल्लभाचार्य (1479–1531) का जन्म चम्पारण (राजिम) में।
🏆 प्रतियोगी परीक्षा के लिए शॉर्ट ट्रिक्स
👉 राजधानी परिवर्तन
तुम्मान → (रत्नदेव I) → रत्नपुर
👉 ‘सकल कोसलाधिपति’ की उपाधि
पृथ्वीदेव I
👉 स्वतंत्रता घोषित कर सिक्के जारी
जाजल्लदेव I
👉 सर्वाधिक अभिलेख
पृथ्वीदेव II
👉 भक्ति आंदोलन व कल्चुरि काल
महाप्रभु वल्लभाचार्य – चम्पारण, राजिम (1479 ई.)
✅ निष्कर्ष
कल्चुरि राजवंश ने छत्तीसगढ़ के राजनीतिक, धार्मिक और सांस्कृतिक विकास में अहम भूमिका निभाई। इनके शासन में छत्तीसगढ़ ने कला, साहित्य और भक्ति आंदोलन में उल्लेखनीय प्रगति की। यही कारण है कि प्रतियोगी परीक्षाओं में कल्चुरि काल से जुड़े प्रश्न अनिवार्य रूप से पूछे जाते हैं।