गाँधीजी के बुनियादी शिक्षा के प्रमुख सिद्धान्तों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
Explain in detail the main principles of Basic Education of Gandhiji.
रुपरेखा :-
प्रस्तवाना
बुनियादी शिक्षा के अर्थ
बुनियादी शिक्षा की परिभाषा
बुनियादी शिक्षा के सिद्धान्त
बुनियादी शिक्षा के विशेषताएं
उपसंहार
संदर्भित ग्रन्थ
प्रस्तावना
तात्कालिक शिक्षा के दोषों को दूर करने के लिए गांधीजी ने शिक्षा में क्रांतिकारी परिवर्तन किए हैं। गांधीजी के शिक्षा सम्बन्धी विचार कोरी कल्पना के परिणाम नहीं है बल्कि गांधीजी के विचार उनके शिक्षा सम्बन्धी प्रयोगों पर आधारित है। गांधीजी अफ्रीका प्रवास के समय सत्याग्रहियों के बच्चों को पढ़ाने का कार्य करते थे।
गांधीजी के शिक्षा सम्बन्धी विचार उनके अनुभवों पर आधारित थे। गांधीवादी विचारों के साथ गांधी जी ने बुनियादी शिक्षा योजना सर्वप्रथम 22. 10. 1937 को वर्धा में प्रस्तुत किया। गांधीवादी विचारकों में जाकिर हुसैन एवं आचार्य विनाबा भावे का नाम महत्वपूर्ण है।
गांधीजी ने अपने अनुभव, परीक्षण एवं प्रयोगों के बाद सन् 1937 में आधुनिक भारत की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए अपने वर्धा आश्रम में एक शिक्षा योजना का प्रयोग किया।
इस शिक्षा योजना को बुनियादी शिक्षा, नई तालीम, वर्धा योजना, आधारभूत शिक्षा, नेशनल एजुकेशन, मौलिक शिक्षा आदि के नाम से भी पुकारा जाता है। अक्टूबर सन् 1937 में वर्धा में आयोजित अखिल भारतीय राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन में गांधीजी ने इस योजना की रुपरेखा प्रस्तुत की। तत्पश्चात् डॉ. जाकिर हुसैन की अध्यक्षता में 'वर्धा शिक्षा योजना समिति' का गठन किया गया।
बुनियादी शिक्षा का अर्थ (Meaning of Basic Education):
बुनियादी शिक्षा का अर्थ बालक को शिक्षा के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाया जाए। जिससे उन्हें जीवन में आने वाली रोजगार की समस्याओं से जूझने के लिए बुनियादी तौर से सक्षम कर दिया जाए अर्थात् बालक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात आर्थिक रुप से स्वावलम्बी हो जाए।
गांधी जी के अनुसार: हमारी बुनियादी शिक्षा पद्धति मस्तिष्क, शरीर और आत्मा तीनो का विकास करती है। साधारण शिक्षा पद्धति केवल मस्तिष्क के विकास पर ही बल देती है। बुनियादी शिक्षा सूत कातने और झाडू लगाने तक ही सीमित नहीं है। ये अतिआवश्यक ही क्यों न हों यदि इनसे उक्त तीनों शक्तियों का सामंजस्ययुक्त विकास नहीं होता तो इसका कोई मूल्य नहीं।
गांधी जी ने बुनियादी शिक्षा में शारीरिक मानसिक के साथ चारित्रिक विकास पर विशेष बल दिया है क्योंकि आगे चलकर एक बालक का चरित्र ही समाज में उभर कर सामने आता है।
बुनियादी शिक्षा को वर्धा योजना, नई तालीम, बुनियादी तालीम और बेसिक शिक्षा के नाम से जाना जाता है। गांधी जी ने बिहार के वर्धा नामक स्थान पर 23 अक्टूबर 1937 को नई तालीम की योजना बनाई, जिसे वर्धा योजना के नाम से जाना जाता है।
बुनियादी शिक्षा की परिभाषा ( Definition of Basic Education )
गाँधी जी के अनुसार :-
" शिक्षा से मेरा अभिप्राय है कि बालक और मनुष्य के शरीर, मस्तिष्क और आत्मा पाए जाने वाले सर्वोत्तम गुणों का चतुर्मुखी विकास। "
डॉ. एस. एन. मुखर्जी के अनुसार :-
" बुनियादी शिक्षा बाल - केंद्रित शिक्षा है और बालक क्रिया द्वारा ज्ञान अर्जन करता है। "
विनोवा भावे के अनुसार :-
" नई तालीम शिक्षा अर्थात नई तालीम का सार तत्व कायम रहे, किंतु उसका बाह्य स्वरूप रहे वह है उसका नित्य नहीं तालीम। "
गांधीजी के अनुसार :-
नई तालीम सिर्फ 7 से 14 साल के बच्चों की शिक्षा तक ही सीमित नहीं है, बल्कि गर्भाधान संस्कार से लेकर आंतोष्टि तक की तालीम है। "
बुनियादी शिक्षा के मुख्य सिद्धान्त (Basic principles of Basic Education) -
बुनियादी, शिक्षा के अनेक सिद्धान्त हैं जिस पर बुनियादी शिक्षा की नींव स्थापित है। बुनियादी शिक्षा के विभिन्न सिद्धान्तों को संक्षेप में स्पष्ट किया गया है-
1. अनिवार्यता का सिद्धान्त (Principle of Compulsion) -
बुनियादी शिक्षा मुख्यतः शिक्षा की अनिवार्यता के सिद्धान्त पर आधारित है। बुनियादी शिक्षा में सभी को अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने पर बल दिया गया है। शिक्षा को अनिवार्य एवं निःशुल्क प्रदान करने का प्रावधान किया गया है।
2. बहुभाषिकता का सिद्धान्त (Principle of Multi-linguism) -
बुनियादी शिक्षा में प्राथमिक शिक्षा का माध्यम मातृभाषा को माना गया है लेकिन आगे चलकर बहुभाषिकता पर बल दिया गया है। भारत जैसे बहुभाषीय तथा भाषिक विविधता वाले देश में किसी एक भाषा को सर्वमान्य मानना कठिन है।
3. दस्तकारी का सिद्धान्त (Principle of Craft) -
बुनियादी शिक्षा का मूल सिद्धान्त आधारभूत दस्तकारी है। बच्चों को आधारभूत दस्तकारी के माध्यम से शिक्षा प्रदान करने पर बल दिया गया है। गांधी जी शिक्षा का आधार दस्तकारी को मानते हैं।
4. समवाय का सिद्धान्त (Principle of Correlation) -
बुनियादी शिक्षा में समवाय के सिद्धान्त को प्रमुखता दी जाती है। समवाय से तात्पर्य शिक्षा तथा दस्तंकारी के समन्वय से है, गांधीजी ने विद्यालयों में समवाय को महत्व प्रदान किया है।
5. स्वावलम्बन का सिद्धान्त (Principle of Self-dependency)
गांधीजीव बुनियादी शिक्षा में दस्तकारी के माध्यम से व्यक्ति को स्वावलम्बी बनाने पर जोर दिया
गया है। गांधीजी प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा के माध्यम से स्ववावलम्बी बनाना चाहते थे। इसके लिए विद्यालयों में दस्तकारी को अनिवार्य करने पर जोर दिया गया है।
6. क्रिया का सिद्धान्त (Principle of Activity)
गांधीजी की बुनियादी शिक्षा क्रिर के सिद्धान्त पर आधारित है। गांधीजी कहते हैं कि बच्चों को विद्यालय में क्रिया पर्याप्त अवसर प्रदान किये जाने चाहिए। सक्रियता के अभाव में बच्चों का शारीरिक एवं मानसिक विकास दोनों प्रभावित होता है।
7. शारीरिक श्रम का सिद्धान्त (Principle of Physical labour)
बुनियादी शिक्ष में शारीरिक श्रम को महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है। गांधीजी ने शारीरिक श्रम हेतु अनेक प्रकार के कार्यों को प्रमुखता प्रदान की है, जैसे श्रमदान, बागवानी, कृषि कार्य, सामुदायिक कार्य, दस्तकारी इत्यादि ।
8. रोचकता का सिद्धान्त (Principle of Interest)
बुनियादी शिक्षा रोचकता के सिद्धान्त पर आधारित है, गांधीजी दस्तकारी के कार्यों के माध्यम से रोचकता में वृद्धि की बात करते हैं।
9. उत्पादकता का सिद्धान्त (Principle of Productivity)
बुनियादी शिक्षा एक उत्पादकता को आपस में सहसंबंधित किया गया है। बुनियादी दस्तकारी के माध्यम से आवश्यक वस्तुओं का व्यापक उत्पादन किया जाता है जिससे अतिरिक्त आय की उत्पत्ति होती है। इस आय का प्रयोग विद्यालय की व्यवस्था को प्रभावी बनाने हेतु किया जाता है।
10. मनोवैज्ञानिकता का सिद्धान्त (Principle of pyschological)
गांधीजी बुनियादी शिक्षा को बाल मनोविज्ञान पर आधारित करते हैं। बुनियादी शिक्षा में दस्तकारी का आधार मनोविज्ञान को माना है तथा समस्त कार्यों एवं गतिविधियों को मनोविज्ञान पर आधारित किया है। बच्चे उत्पादक कार्यों के माध्यम से विद्यालय की विभिन्न गतिविधियों में रुचि लेते हैं तथा विद्यालय में उनकी उपस्थिति सुनिश्चित होती है।
11. नैतिकता का सिद्धान्त (Principle of Morality)
बुनियादी शिक्षा में नैतिक गुणों के विकास पर बल दिया गया है, तथा नैतिक सिद्धान्तों के आधार पर विभिन्न नैतिक मूल्यों का विकास किया जाता है। गांधी जी नैतिकता को स्वावलंबन के समकक्ष स्थान प्रदान करते हैं, वे कहते हैं कि समस्त प्रकार के शिक्षा को मूल रूप से नैतिकता पर आधारित होना चाहिए।
12. धार्मिकता का सिद्धान्त (Principle of Religiousness)
गांधीजी बुनियादी शिक्षा को किसी विशेष धर्म की शिक्षा पर आधारित नहीं करते हैं। ये सभी धर्मों के मूल सिद्धान्तों को शिक्षा में शामिल करने पर बल देते हैं। गांधीजी कहते हैं कि धर्म व्यक्ति से व्यक्ति को जोड़ने का कार्य करता है तथा शिक्षा के द्वारा आपसी वैमनस्य को दूर किया जाना चाहिए।
13. सामुदायिकता का सिद्धान्त (Principle of Community)
बुनियादी शिक्षा की अवधारणा सामुदायिकता के सिद्धान्त पर आधारित है। गांधी जी कहते हैं कि शिक्षा का उद्देश्य व्यक्तिगत विकास न होकर सामूहिक विकास है।
शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति में सामूहिकता एवं सामुदायिकता की भावना का विकास होना चाहिए। शिक्षा को समुदाय से संबंद्ध करने का प्रयास किया गया है। गांधीजी विद्यालयों के विकास एव संचालन के लिए समुदाय के सहयोग पर भी बल देते हैं।
बुनियादी शिक्षा की विशेषताएं (Characteristics of Basic education)
गांधी जी की बुनियादी शिक्षा की निम्न विशेषताएं हैं, जिसमें मूल रूप से उत्पादकीय कार्यों को प्रमुखता प्रदान की गई है। पाठ्यचर्या में उत्पादकीय कार्यों के लिए 5 घण्टे 30 मिनट के समय में से 3 घण्टे 20 मिनट केवल आधारभूत शिल्प के अभ्यास एवं प्रशिक्षण के लिए निर्धारित किया गया था।
1 . दस्तकारी की शिक्षा (Training of Handicraft):
गांधीजी के शब्दों में -
''साक्षरता स्वयं शिक्षा नहीं है। अतः मैं बच्चे की शिक्षा उसे एक उपयोगी हस्तकला सिखाकर और जिस समय से वह अपनी शिक्षा आरम्भ करता है, उसी समय से उसे उत्पादन करने के योग्य बनाकर आरम्भ करना चाहता हूँ।"
2. स्वावलम्बी शिक्षा (Self-Supporting Education):
गांधीजी ने बुनियादी शिक्षा के आधारभूत सिध्दांत की ओर संकेत करते हुए कहा "सच्ची शिक्षा स्वावलम्बी होनी चाहिए। इसका अभिप्राय यह है कि शिक्षा से पूँजी के अतिरिक्त वह सब धन मिल जाना चाहिए, जो उसे प्राप्त करने में व्यय किया जाय।" शिक्षा किसी लाभप्रद दस्तकारी से प्रारम्भ होनी चाहिए जो बालक को आर्थिक रुप से स्वावलम्बी बना सके। बुनियादी शिक्षा द्वारा बालकों को बेरोजगारी से एक प्रकार की सुरक्षा देनी चाहिए।
3. शारीरिक श्रम (Manual Labour):
गांधीजी के शब्दों में-बालक के शरीर के अंगो का विवेकपूर्ण प्रयोग- उसके मस्तिष्क को विकसित करने की सर्वोत्तम और शीघ्रतम् विधि है। शिक्षा को बालक की शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शक्तियों को प्रोत्साहित करना चाहिए।
4. शिक्षा का माध्यम, 'मातृभाषा' (Mother-Tongue as Medium of Instruction) :
गांधी जी के अनुसार शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होनी चाहिए, विदेशी भाषा कभी भी भारतीयता का वाहक नही बन सकती है।
5. निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा (Free & Compulsary Education):
सम्पूर्ण देश में 7 से 14 वर्ष तक के बालकों की शिक्षा निःशुल्क और अनिवार्य होनी चाहिए। प्राथमिक शिक्षा का आरम्भ 7 वर्ष से किया जाना चाहिए। सात वर्ष की आयु के बच्चे शारीरिक रुप से दस्तकारी के कार्य करने के लिए सक्षम हो जाते हैं तथा कार्य का आनंद प्राप्त करते हैं। शिक्षण जीवन की वास्तविक परिस्थितियों में दिया जाना चाहिए।
6. सामाजिक शिक्षा (Social Education):
रायबर्न का कथन है "बुनियादी विद्यालय एक वास्तविक सामाजिक इकाई बन जाता है और बच्चों को साथ-साथ रहने की कला का वास्तविक प्रशिक्षण मिलता है।" समाजहित के अनुरुप बालक की शक्तियों का विकास होना चाहिए।
7. जनसाधारण की शिक्षा (Education of the Masses):
गांधीजी के कथनानुसार- 'जनसाधारण की अशिक्षा-भारत का पाप और कलंक है अतः उसका अन्त किया जाना
अनिवार्य है।" शिक्षा सभी के लिए अनिवार्य होनी चाहिए, बुनियादी शिक्षा के मूल में शिक्षा का लोकव्यापीकरण निहित है।
8. मानवीय गुणों का विकास (Development of Human values)
शिक्षा विद्यार्थियों में समस्त मानवीय गुणों का विकास करें। शिक्षा को बालक के शरीर, हृदय, मस्तिष्क और आत्मा का सामंजस्यपूर्ण विकास करना चाहिए। शिक्षा ऐसी हो जो बालक में समाज सेवा की भावना को विकसित कर सके। बुनियादी शिक्षा बच्चों में मानवीय गुणों जैसे त्याग, अनुशासन, सत्यनिष्ठता, जवादेयता इत्यादि का विकास करती है।
9. रचनात्मक विद्यालय की अवधारणा (Concept of Creative schools)
गांधी जी के अनुसार विद्यालय ऐसा स्थान होना चाहिए, जहां बालक नवीन खोजों की तरफ अग्रसर होता रहे। गांधी जी ने बुनियादी शिक्षा के माध्यम से विद्यालयों को रचनात्मक विद्यालय बनाने बनाने पर बल दिया।
10. शिक्षक की स्थिति में सुधार (Improvement in Status of teacher)
गाधी जी बुनियादी शिक्षा के माध्यम से शिक्षक की स्थिति में भी सुधार करना चाहते थे, गांधीजी भारतीय शिक्षक को नौकरशाही की दासता से मुक्त कराना चाहते थे।
औपनिवेशिक शासन के अधीन स्कूल शिक्षक के पेशे का अर्थ था पाठ्यपुस्तकों में नौकरशाही द्वारा चयनित ज्ञान के प्रकार और विषयवस्तु को प्रसारित और स्पष्ट करना।
पाठ्यपुस्तकों का अनिवार्य प्रयोग और शिक्षक की कमजोर स्थिति के बीच के संबंध का खुलासा करते हुए गांधी ने लिखा है, "यदि पाठ्यपुस्तकें शिक्षा के वाहन के रुप में इस्तेमाल होती हैं तो शिक्षक के जीवन्त शब्दों का मूल्य बहुत कम रह जाएगा।
जो शिक्षक पाठ्यपुस्तकों से पढ़ाता है वह अपने शिष्यों में मौलिकता पैदा नहीं कर पाएगा।"*
11. आदर्श समाज की संकल्पना (Concept of Ideal society)
बुनियादी शिक्षा गांधीजी के एक आदर्श समाज की संकल्पना का हिस्सा थी जो छोटे और आत्मनिर्भर समुदायों से मिलकर बनता हो। उनके लिए, भारतीय गांव ऐसे समुदाय के रुप में विकसित होने में सक्षम थे और वास्तव में वे यकीन करते थे कि भारतीय गांव ऐतिहासिक रुप से आत्मनिर्भर थे और वर्तमान में बड़ा काम था- उनकी स्वायत्तता और आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए जरुरी स्थितियां और राजनैतिक गरिमा को पुनःस्थापित करना।
12. ग्रामीण विकास पर बल (Emphasis on Rural development)
वे सोचते थे कि औपनिवेशिक शासन ने गांव की अर्थव्यवस्था को शहरवासियों के दोहन के अधीन बनाकर बर्बाद कर दिया है। औपनिवेशिक शासन से मुक्ति का अर्थ गांव का सशक्तिकरण और इसका स्वनिर्भर समुदाय के रुप में विकास होना होगा।
बच्चों को उत्पादक कार्यों का प्रशिक्षण देकर और सहयोग पर आधारित समुदाय में रहने के लिए सहायक अभिवृत्तियों और मूल्यों को प्रदान करके बुनियादी शिक्षा की योजना इस तरह गांव के विकास के लिए अभिप्रेत थी।
13. उत्पादन प्रक्रिया (Production process)
गांधीजी द्वारा स्कूल के लिए प्रस्तावित उत्पादन प्रक्रियाओं का औचित्य वैसा चौंकाने वाला नहीं था जैसी यह व्याख्या है। उनका प्रस्तावित तर्क था, दो वजहों से, कि स्कूलों को, जितना सम्भव हो, आत्मनिर्भर होना चाहिए।
पहली वजह पूरी तरह से आर्थिक थी यानी कि, एक गरीब समाज अपने सभी बच्चों को तब तक शिक्षा उपलब्ध नहीं करा सकता, जब तक स्कूल अपने संचालन के लिए भौतिक और आर्थिक संसाधनों को न जुटा पाए। दूसरी वजह राजनैतिक थी: केवल आर्थिक आत्मनिर्भरता ही स्कूलों को राज्य पर निर्भरता और इसके हस्तक्षेप से बचा सकती थी।
14. पाठ्यपुस्तकों पर अधीनता को समाप्त करना (End of Dependancy on textbooks)
गांधी की बुनियादी शिक्षा की योजना में, निर्धारित पाठ्यचर्या और पाठ्यपुस्तकों से शिक्षक की अधीनता को समाप्त करना था। इसने सीखने की ऐसी अवधारणा को प्रस्तुत किया, जिसे पूरी तरह पाठ्यपुस्तकों से लागू नहीं किया जा सकता था।
इससे ज्यादा महत्वपूर्ण था बुनियादी शिक्षा की योजना में पाठ्यचर्या से संबंधित मसलों पर शिक्षक को प्राप्त स्वतंत्रता और सत्ता। यह एक उदारवादी योजना थी क्योंकि यह कक्षा में शिक्षक को सीधे-सीधे क्या करना चाहिए, इसे करने की राज्य की सत्ता का निषेध करती थी।'
15. धर्म विशेष की शिक्षा का विरोध (Opposition of Religious education)
गांधी ने बुनियादी शिक्षा में धार्मिक शिक्षा को कोई स्थान प्रदान नहीं किया है, तथा कहा कि "हम वर्धा की शिक्षा योजना से धर्म के शिक्षण को बाहर कर चुके हैं क्योंकि हमें डर है कि आज जिस तरह धर्मों को पढ़ाया या व्यवहार में लाया जाता है, वे एकता की बजाय टकराहट की तरफ ले जाते हैं।
लेकिन, दूसरी तरफ, मैं मानता हूं कि सभी धर्मों के समान सत्यों को सभी बच्चों के लिए पढ़ाया जा सकता है और पढ़ाया जाना चाहिए। ये सत्य शब्दों या पुस्तकों के जरिए नहीं पढ़ाए जा सकते- बच्चे इन सत्यों पर जीता है, केवल तभी बच्चे सीख सकते हैं कि सत्य और न्याय सभी धर्मो का आधार है।
उपसंहार :-
गांधी जी की बुनियादी शिक्षा योजना नव सामाजिक व्यवस्था के निर्माण और सामाजिक परिवर्तन में उचित भूमिका निभा सकती है । यह शिक्षा प्रणाली मनोविज्ञान पर आधारित है जिसमें बालकेन्द्रित शिक्षा पर बल दिया गया है। गांधी जी की नई शिक्षा प्रणाली बंधुत्व भाव, सहयोगपूर्ण कार्य, सामूकि जीवन एवं सामाजिक गुणों का विकास करती है ।
संदर्भित ग्रन्थ :-
1. पाठ्यक्रम और ज्ञान - श्रीमती आर.के. शर्मा
2. भारत में शिक्षा का विकास - गुरशरण दास त्यागी
3. नई तालीम - धीरेंद्र मजूमदार
4. बुनियादी तालीम - ए. अरविन्दाक्षन मिथिलेश
5. बेसिक शिक्षा - महात्मा गांधी
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