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    19 January 2022

    भक्ति आंदोलन से क्या तात्पर्य है? | Bhakti Movement in India


    भक्ति आंदोलन। Bhakti Movement in India। भक्ति आंदोलन से जुड़े महत्वपूर्ण जानकारी । भक्ति आंदोलन की शुरुआत कैसे हुई?।भक्ति आंदोलन का मुख्य उद्देश्य क्या था?।भक्ति आन्दोलन के संस्थापक कौन थे?।भक्ति आंदोलन से क्या तात्पर्य है?


    भक्ति आंदोलन एक धार्मिक आंदोलन है जिसके माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन बंधनों से मुक्ति का मार्ग तथा मोक्ष प्राप्ति के मार्ग ढूंढने का प्रयास किया है। भक्ति आंदोलन में बड़े-बड़े व्यक्तियों ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है तथा सभी अपने - अपने तरीके से भक्ति आंदोलन को पूरे भारत में प्रचार करने का कार्य किया है।


    भक्ति आंदोलन के माध्यम से लोगों के जीवन में होने वाले कष्ट,दुख,दुविधाओं को दूर करने का मार्ग ढूंढने का प्रयास किया गया है। इसमें अध्यात्मिक विश्वास पर विशेष जोर दिया गया है। भक्ति आंदोलन में शंकराचार्य , वल्लभाचार्य , रामानुजा , कबीर , मीराबाई , निंबार्काचार्य जैसे महान संतों ने हिस्सा लिया और सभी की अपनी-अपनी विचार थे और उन्हीं के अनुसार उन्होंने अपना मत दीए।


    भक्ति आंदोलन से क्या तात्पर्य है? | Bhakti Movement in India


    इस लेख में हम भक्ति आंदोलन के महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डालने की कोशिश करेंगे जो कि प्रतियोगी परीक्षा की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण होगा।




    भक्ति आंदोलन से क्या तात्पर्य है?

    What is meant by Bhakti movement?


    भक्ति आंदोलन वह धार्मिक आंदोलन था जिसमें ईश्वर की उपासना और जीवन बंधनों से मुक्ति का मार्ग इष्ट देव के प्रति पूर्ण संभावना ढूंढने का प्रयास किया गया था। इसमें ईश्वर से व्यक्ति के आध्यात्मिक एकीकरण पर विशेष जोर दिया गया था। इस कार्य को करने के लिए ना तो पुरोहितों की आवश्यकता थी ना किसी धार्मिक कांड की।


    भक्ति आंदोलन के संपादक या जनक रामानुजाचार्य जी को माना जाता है। इन्होंने हिंदू धर्म में मोक्ष प्राप्ति के तीन मार्ग बताए हैं-

    1. कर्म मार्ग

    2. ज्ञान मार्ग 

    3.भक्ति मार्ग


    वैदिक साहित्य ज्ञान मार्ग पर बल देता है । 

    भक्ति शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग श्वेताश्वर उपनिषद में किया गया है। 

    भक्ति आंदोलन की शुरुआत भारत में छठवीं शताब्दी में दक्षिण भारत से हुई है। 

    भक्ति आंदोलन का विकास 12 अलवर (वैष्णो संतो ) व 63 नयनार (शैव संतों) ने किया है।


    भारत में भक्ति आंदोलन की प्रमुख मान्यताएं

    (Major Beliefs of Bhakti Movement in India)


    1. एकेश्वरवाद

    2.सभी के लिए मोक्ष संभव है।

    3. प्रेम व भक्ति पर विशेष बल दिया गया है।

    4.जाति प्रथा का घोर विरोध किया गया है

    5. भगवान व भक्त के मध्य सीधा सम्बंध

    6.कर्मकाण्ड एवम आडंबर के घोर विरोधी


    भक्ति आंदोलन को दक्षिण भारत से उत्तर भारत में 12 वीं शताब्दी के प्रारंभ में रामानंद के द्वारा लाया गया था। रामानंद कि शिक्षा से दो संप्रदायों का जन्म हुआ ।


    सगुण तथा निर्गुण


     सगुण जो पुनर्जन्म में विश्वास रखता है व मूर्ति पूजा करता है ।और  निर्गुण वह है जो भगवान के निराकार रूप को पूछता है ।

    सगुण संप्रदाय के सबसे प्रसिद्ध व्याख्याताओं में थे तुलसीदास और नाभादास जैसे रामभक्त और निम्बकचार्य,वल्लभाचार्य ,चैतन्य महाप्रभु, सूरदास और मीराबाई जैसे कृष्ण भक्त थे । निर्गुण सम्राट संप्रदाय के सबसे प्रसिद्ध प्रतिनिधि थे कबीर जिन्हें भावी उत्तर भारतीय पंथों का आध्यात्मिक गुरु माना गया है।


    शंकराचार्य की अद्वैतवाद के विरोध में वैष्णो संतो द्वारा 4 संप्रदायों की स्थापना की गई है :- 

    1. विशिष्टाद्वैतावाद  -  रामानुजाचार्य जी के द्वारा

    2. शुद्धाद्वैतावाद     -  वल्लभाचार्य जी के द्वारा

    3. द्वैताद्वैतावाद      -   निम्बकचार्य

    4. द्वैतावाद           -   मध्वाचार्य


    अन्य प्रमुख दर्शन


     अद्वैतवाद                   -      शंकराचार्य

     भेदा-भेदवाद               -      भास्कराचार्य

    अंचित्य भेदाभेद वाद     -      चैतन्य महाप्रभु



    भारत में भक्ति आंदोलन के प्रमुख संत

    (Major Saints of Bhakti Movement in India)


    1. शंकराचार्य (Shankaracharya)


    • शंकराचार्य वेदांत व उपनिषद के प्रबल समर्थक थे।
    • मत/दर्शन  - एकेश्वरवाद या अद्वैतवाद
    • इनका जन्म  - काकड़ी (केरल,में 8वीं शताब्दी में हुआ)
    • शंकराचार्य भारत के आदिगुरू माने जाते है।


    शंकराचार्य जी के द्वारा स्थापित प्रमुख पीठ

    शंकराचार्य जी ने  4 पीठ की स्थापना किये हैं :-


    1. ज्योतिष पीठ   - बद्रीनाथ (उत्तराखण्ड) उत्तर में 


    2. श्रृंगेरी पीठ     -  मैसूर (कर्नाटक) दक्षिण में


    3. गोवर्धन पीठ   - पूरी (उड़ीसा) पूर्व में


    4. शारदा पीठ   -  द्वारका (गुजरात) पश्चिम में 


    शंकराचार्य जी ने ज्ञान मार्ग पर बल दिया तथा ज्ञान को मोक्ष प्राप्ति का साधन बताया है।




    2 रामानुजाचार्य (Ramanujacharya) (तमिलनाडु)


    • रामानुजाचार्य भक्ति आंदोलन के प्रवर्तक हैं।
    • इन्हें शेषनाग के अवतार समझे जाते थे।
    • मध्यकालीन भक्ति आंदोलन के अग्रदूत रहे हैं।
    • इनका जन्म   - श्री पैराम्बूर (तमिलनाडु) में हुआ ।
    • ये श्री संप्रदाय के प्रवर्तक तथा  राम का उपासक थे।
    • इन्होंने विशिष्ट द्वैतवाद का प्रतिपादन औऱ  वैष्णव धर्म का प्रतिपादन किया।

     

    रामानुजाचार्य जी की प्रमुख रचनाएँ

    • श्री भाष्य, 
    • गीता भाष्य,
    •  वेदान्त संग्रह, 
    •  वेदान्त द्वीप
    • 'कण-कण में है भगवान' 
    • शब्द की उत्पत्ति की।


    3. रामानंद ( Ramanand) (उ.प्र.)


    • रामानंद जी राम के उपासक थे।
    • रामानंद जी का जन्म 1299 में प्रयाग उ.प्र.में हुआ था ।
    • ये रामानुज के शिष्य थे।
    • भक्ति आंदोलन को उत्तर भारत में लाने का श्रेय इन्ही को दया जाता है।


    इनके प्रमुख शिष्य थे।


    1. कबीर (जुलाहा)

    2. रैदास (चमार)

    3. धन्ना (जाट)

    4. नामदेव (दर्जी)

    5. पीपा (राजपुत)

    6. सेना (नाई)



    4. वल्लभाचार्य (Vallabhacharya)

    • वल्लभाचार्य जी का जन्म 1479 में (चम्पारण्य, उप्र.) में हुआ था। 
    • ये कृष्ण के उपासक थे।
    • कृष्णदेव राय के दरबार में शैव विद्वानों को धार्मिक शास्त्रार्थ में पराजित किये थे।
    • पृष्टि मार्ग के प्रतिपादक हैं(इनके भक्ति मार्ग को पुष्टिमार्ग कहते है।)
    • शुद्ध द्वैतवाद का प्रतिपादन किया


    कृतियाँ :-

    •  सुबोधिनी 
    •  सिद्धांत रहस्य

     

    इनके पुत्र गोसाई विट्ठलदास ने अष्टछाप संप्रदाय की स्थापना की (ये अष्टछाप इनके व वल्लभाचार्य के 8 कृष्णमार्गी शिष्य थे।)



    5. चैतन्य महाप्रभुयाल (Chaitanya Mahaprabhuyal)

    • चैतन्य महाप्रभुयाल जन्म 1486 (नदिया, प. बंगाल)में हुआ था। 
    • ये कृष्ण के उपासक / सगुण विचारधारा के समर्थक थे।
    • इनका वास्तविक नाम - विशम्भर मिश्र था।
    •  पाठशाला में – निमाई पण्डित के नाम से जाने जाते थे।
    • बंगाल में भक्ति आंदोलन के प्रवर्तक रहे।
    • 'गोसाई संघ' की स्थापना की।
    • संकीर्तन प्रथा की शुरूवात की।
    • दार्शनिक सिद्धांत - अचिंत्य भेदाभेदवाद
    • पिता का नाम - जगन्नाथ मिश्र, माता का नाम शची देवी था। 
    • सन्यासी बनने के बाद बंगाल छोड़कर पुरी (उड़ीसा) चले गए, जहां उन्होंने दो दशक तक भगवान जगन्नाथ की
    • उपासना की।
    • प्रेम भक्ति, नृत्य, संगीत द्वारा ईश्वर में लीन होने की बात कहीं।
    • बगाल आधुनिक वैष्णववाद, जिसे 'गौड़ीय वैष्णव धर्म' कहा जाता है, का संस्थापक माना जाता है



    5.कबीर (Kabir)

    • कबीर जी का जन्म 1425  (लहरतारा, काशी) में हुआ।
    • इनका जन्म एक विधवा ब्राम्हणी के गर्भ से हुआ था।
    • लोक-लज्जा के भय से उसने कबीर को लहरतारा के पास एक तालाब के निकट छोड़ दिया था।
    •  जुलाहा नीरू तथा उसकी पत्नी नीमा ने इन्हें पाला तथा इनका नाम कबीर रखा।

    • समाधि  - मगहर में
    • रामानंद के प्रिय शिष्य थे।
    • सिकंदर लोदी के समकालीन थे
    • निर्गुण ब्रम्ह के उपासक थे।


     इन्होंने शिक्षाओं का संग्रह किया जिसे  बीजक एवं बनिक कहा जाता था।

    इन्होंने जाति प्रथा, धार्मिक कर्मकाण्ड, बाह्य आडंबर, मूर्ति पूजा, जपतप, अवतारवाद आदि का घोर विरोध करते

    हुए एकेश्वरवाद में आस्था व्यक्त की एवं निराकार ब्रम्ह की उपासना को महत्व दिया।


    निर्गुण भक्ति धारा से जुड़े कबीर ऐसे प्रथम भक्त थे जिन्होंने संत होने के बाद भी पूर्णतः गृहस्थ जीवन निर्वाह किया।


    कंबीर के उपदेश 'सबद सिक्खों के आदिग्रंथ में संग्रहीत हैं। (हिंदु-मुस्लिम एकता का प्रयास कबीर की देन है)


    उत्तर भारतीय पंथों का आध्यात्मिक गुरू' कहा जाता है।


    कंबीर के प्रमुख रचनाए


    1. साखी

    2. सबद

    3. रमैनी



    6. गोस्वामी तुलसीदास (Goswami Tulsidas)


    • तुलसीदास जी का जन्म - 1554 (उ.प्र. के बांदा जिले के राजापुर गांव) में हुआ ।
    • इनका वास्तविक नाम -  रामबोला था।
    • राम के अनन्य उपासक थे।
    • ये अकबर के समकालीन थे।
    • 1574 में  20 वर्ष की उम्र में रामचरित मानस की रचना की। 


    गोस्वामी तुलसीदास जी की प्रमुख रचनाए


    1. विनयपत्रिका,

    2.  कवितावली, 

    3.  दोहावली



    7. मीरा बाई (Mirabai)

    • मीरा बाई  सगुण विचारधारा की समर्थक थीं।
    • राजस्थान में भक्ति आंदोलन को आगे बढ़ाने का श्रेय इन्ही को जाता है।
    • मीरा बाई के गुरु रैदास जी थे।
    • मेवाड़ की वधु और कृष्ण की दीवानी थी।
    • राणा सांगा के पुत्र भोजराज से इनका विवाह  विवाह हुआ।



    8. तुकाराम (Tukaram)

    • तुकाराम महाराष्ट्र  के निवासी थे तथा ये शुद्ध जाति के थे।
    • तुकाराम शिवाजी के समकालीन थे।
    • इन्होंने  बरकरी संप्रदाय की स्थापना की।



    9. धन्ना (Dhanna) (राजस्थान)

    • धन्ना  राजस्थान के रहने वाले थे इनका जन्म-1415 (जाट परिवार में हुआ था।
    • राजपुताना से बनारस आकर रामानंद के शिष्य बन गए।
    • इन्होंने भगवान की मूर्ति को हठात् भोजन कराया था।



    10. रैदास ( Raidas) (रामानंद के शिष्य)


    • जाति के चमार थे। जूता बनाकर जीविकोपार्जन करते थे।
    • मीराबाई ने इन्हें अपना गुरू माना।
    • रायदासी सम्प्रदाय की स्थापना की।
    • संसार को एक खेल तथा ईश्वर को खेल का सचालन करने वाला माना


    11. दादू दयाल ( Dadu Dayal) (गुजरात)

    • दादू दयाल  गुजरात के रहने वाले थे इनका  जन्म- अहमदाबाद  में  1554  में हुआ था । 
    • ये निर्गुण  विचारधारा के समर्थक थे।
    • कबीर के अनुयायी थे।
    •  धुनिया जाति के थे।
    • अकबर ने धार्मिक चर्चा के लिए इन्हें एक बार फतेहपुर सीकरी बुलवाया था।
    • इनके अनुयायियों ने गुजरात में निपख आदोलन चलाये थे।


    12. नरसिंह मेहता (Narsingh Mehta)


    • नरसिंह मेहता गुजरात के रहने वाले थे।
    • राधा व कृष्ण के प्रेम का चित्रण करते हुए गुजराती गीतों की रचना की 'वैष्णव जन तो तेनो कहिए रे' गीत के रचयिता हैं।


    FAQ


    1. भक्ति आंदोलन की शुरुआत कैसे हुई


    भक्ति आंदोलन की शुरुआत मध्यकालीन भारत में सबसे पहले दक्षिण के अलवार तथा नए नार संतो द्वारा की गई 12 वीं शताब्दी में इस आंदोलन को उत्तर भारत से दक्षिण भारत में रामानंद के द्वारा लाया गया।


    2. भक्ति आंदोलन का मुख्य उद्देश्य क्या था?


    हिंदू धर्म एवं समाज में सुधार तथा इस्लाम एवं हिंदू धर्म में समन्वय स्थापित करना भक्ति आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था। मुस्लिम शासकों के बर्बर शासन व उनके अत्याचारों से तंग आकर अपनी सुरक्षा के लिए हिंदू जनता ने भक्ति मार्ग का सहारा लिया ।


    3. भक्ति काल को स्वर्ण काल क्यों कहा गया है?

    भक्ति काल में सभी आडंबर ओं का खंडन करते हुए मानवतावाद की स्थापना पर विशेष बल दिया गया है। कबीर मूर्ति पूजा के घोर विरोधी थे उन्होंने कहा 

    कंकर पत्थर जेरी के मस्जिद लई बनाय ।

    भक्ति काल का महत्व साहित्य और भक्ति दोनों दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। इसलिए इस काल को स्वर्ण काल कहा जाता है।


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