इस लेख में हम छत्तीसगढ़ के विभिन्न स्थानों पर पाई जाने वाली मिट्टियों का विश्लेषण करने वाले हैं। नीतियों का स्थानीय नाम तथा उनमें उत्पन्न होने वाले फसलों के नाम और किन किन जिलों में पाई जाती है इन सभी का विस्तार पूर्वक हम इस लेख में देखने वाले हैं।
अगर आप एक प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो आपके लिए यह लेख अत्यंत महत्वपूर्ण होगा क्योंकि कई बार प्रतियोगी परीक्षा में मिट्टियों से रिलेटेड प्रश्न आ चुके हैं ,जिसमें मिट्टियों के स्थानीय नाम तथा वह किन स्थानों पर पाई जाती है तथा उसमें किस प्रकार के फसल बोई जाती है।
इस तरह के प्रश्न आ चुके हैं इसलिए आपको बहुत ही ध्यान पूर्वक इस लेख को पढ़ना चाहिए। इस लेख में हम मुख्य बिंदुओं पर फोकस करने की कोशिश किए हैं।
छत्तीसगढ़ की मिट्टियां (Soils of chhattisgarh)
मिट्टी धरातल की ऊपरी सतह होती है। जिसका निर्माण रेप, कले, ह्यूमस, वनस्पति के अंश एवं अन्य खनिजों से होता है। उक्त निर्माण कारी तत्वों के अनुपात से ही मिट्टी की उत्पादकता,अनुत्पादकता एवं जल धारण क्षमता आदि का निर्धारण होता है। कृषि भूमि का उपयोग, फसलों के प्रादेशिक वितरण ,उनके उत्पादन की मात्रा तथा उत्तमता भी मिट्टी की प्रकृति से निर्धारित होती है।
छत्तीसगढ़ में कितने प्रकार की मिट्टियां पाई जाती है? मिट्टियों का वर्गीकरण करें?
छत्तीसगढ़ में मुख्यता पांच प्रकार की मिट्टी पाई जाती है-
- लाल -पीली मिट्टी
- लाल बलुई मिट्टी
- काली मिट्टी
- लैटेराइट मिट्टी
- लाल दोमट मिट्टी
1.लाल -पीली मिट्टी (Red-yellow clay)
लाल पीली मिट्टी को स्थानीय भाषा में मटासी मिट्टी भी कहा जाता है।
इसका निर्माण कडप्पा धारवाड़ एवं गोड़वाना क्रम के चट्टानों के अवशेष से हुआ है।
प्रदेश के सर्वाधिक क्षेत्रफल 55 से 60 परसेंट पर इस प्रकार की मिट्टी पाई जाती है।
लाल -पीली मिट्टी अम्लीय व छारीय दोनों प्रकृति की होती है जिसके कारण इसे धान की फसल के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।
इस मिट्टी में चुने की अधिकता पाई जाती है जिसके कारण भी से धान की फसल के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।
इस मिट्टी का लाल रंग फेररस ऑक्साइड के कारण होता है तथा पीला रंग फेरिक ऑक्साइड के कारण होता है।
इस मिट्टी में नाइट्रोजन फास्फोरस एवं हयूमस की कमी पाई जाती है तथा इस मिट्टी में जीवाश्म का अभाव होता है।
लाल पीली मिट्टी में बालू की मात्रा अधिक होने के कारण इसकी जल धारण करने की क्षमता कम होती है।
लाल- पीली मिट्टी का विस्तार :- कोरिया ,सरगुजा ,बलरामपुर ,सूरजपुर, जसपुर, कोरबा, रायगढ़ ,जांजगीर -चांपा ,बिलासपुर ,मुंगेली, दुर्ग, बेमेतरा, बालोद ,राजनांदगांव, धमतरी, रायपुर, गरियाबंद, बलोदा बाजार, महासमुंद आदि तक है।
2. लाल बलुई मिट्टी (Red sandy soil)
लाल बलुई मिट्टी को स्थानीय भाषा में टिकरा मिट्टी भी कहा जाता है यह मिट्टी वृक्षारोपण के लिए उपयोगी माना जाता है।
इस मिट्टी में लोहे के अंश की अधिकता के कारण इसका रंग लाल दिखाई देता है।
यह मिट्टी ग्रेनाइट व नीस नामक चट्टानों के अवछरण से निर्मित होती है
राज्य के दूसरा सर्वाधिक क्षेत्रफल 25 से 36 परसेंट पर इस प्रकार की मिट्टी पाई जाती है। इसकी प्रकृति अम्लीय होती है।
लाल बालू मिट्टी में बालू व कंकड़ की अधिकता पाई जाती है तथा मृदा के कारण अपेक्षाकृत बड़े होने के कारण इसकी जल धारण क्षमता कम होती है जिसकी वजह से यह उपजाऊ नहीं होती है।
इस प्रकार की मिट्टी में मुख्यता मोटे अनाज उगाई जाती है जैसे ज्वार बाजरा कोदो कुटकी मक्का आदि। इस प्रकार के अनाज के लिए उपयोगी है । यही कारण है कि दंतेवाड़ा जिला मोटे अनाज के लिए अग्रणी जिला के रूप में जाना जाता है।
लाल बलुई मिट्टी मैं पोटाश एवं ह्यूमस की मात्रा में कमी पाई जाती है तथा लोहे की प्रधानता रहती है।
लाल बलुई मिट्टी का विस्तार :- कांकेर ,बस्तर ,नारायणपुर, दंतेवाड़ा ,बीजापुर ,सुकमा, कोंडागांव आदि।
3. काली मिट्टी या रेगुर मिट्टी (Black soil or regur soil)
काली मिट्टी को स्थानीय भाषा में कन्हार मिट्टी या रेगुर मिट्टी कहा जाता है। उच्च भूमि में प्राप्त होने वाली काली मिट्टी को भर्री का हालात कहा जाता है।
बेसाल्ट चट्टानों के अपरदन से काली मिट्टी का निर्माण होता है। किस मिट्टी में फेरिक टाइटेनियम कार्बनिक तत्व एवं जीवाश्म के मिश्रण होने के कारण इसका रंग काला दिखाई देता है।
काली मिट्टी की जल धारण क्षमता अधिक होती है जिससे सिंचाई की आवश्यकता कम पड़ती है। गर्मी के दिनों में काली मिट्टी में जल के अभाव होने के कारण मिट्टी पर दरार पड़ जाती है जिसके कारण न्यूनतम जुताई की जरूरत पड़ती है। परंतु बरसात के दिनों में यह मिट्टी चिपचिपी हो जाती है जिसके कारण कृषि कार्य में असुविधा उत्पन्न होती है।
काली मिट्टी में चुना फोटोस मैग्नीशियम की अधिकता एवं आद्रता ग्राही होने के कारण या मिट्टी कृषि हेतु उत्तम मानी जाती है, परंतु इसमें नाइट्रोजन ,फास्फोरस का अभाव पाया जाता है। धान की फसल के अलावा इस मिट्टी में गेहूं ,चना ,मूंगफली,दालें,सोयाबीन ,कपास गन्ना आदि की फसल ली जाती है।
काली मिट्टी का विस्तार :- मुंगेली, कवर्धा, बालोद, बेमेतरा ,राजीम, महासमुंद , दुर्ग तथा धमतरी तहसीलों तक है।
4. लैटेराइट मिट्टी /भाटा मिट्टी /मुरमी मिट्टी
(Laterite soil / reflux soil / loamy soil)लैटेराइट मिट्टी को स्थानीय भाषा में भाटा मिट्टी मुरमी मिट्टी कहा जाता है। किस मिट्टी में पोषक तत्वों जैसे पोटाश चुना नाइट्रोजन आदि की कमी पाई जाती है साथ ही इस मिट्टी में रेट एवं कंकड़ की मात्रा अधिक होने के कारण यह मिट्टी कम उपजाऊ होती है।
लेटराइट मिट्टी कठोरता एवं कम आद्रता ग्राही होने के कारण भवन निर्माण एवं कृषि से भिन्न कार्यों के लिए उत्तम मानी जाती है।
यह मिट्टी कृषि कार्यों के लिए उपयुक्त नहीं है लेकिन पर्याप्त जल की उपलब्धता करा कर आलू एवं मोटे अनाज उगाए जा सकते हैं तथा इस मिट्टी में चाय एवं बागानी फसलों की खेती की जा सकती है।
लैटेराइट मिट्टी ऊंचाई वाले प्रदेशों में पाई जाती है जहां वर्षा की मात्रा अधिक होती है। यह मिट्टी सरगुजा के (अंबिकापुर ,मैनपाट ,सीतापुर )तथा बलरामपुर के (सामरी), जसपुर (बगीचा ),बेमेतरा (साजा), बलोदा बाजार( भाटापारा), राजनांदगांव के (छुई खदान ),कवर्धा तहसील तथा बस्तर के( जगदलपुर )में पाई जाती है।
5. लाल - दोमट मिट्टी
लाल - दोमट मिट्टी में लौह तत्वों की अधिकता होती है जिसके कारण इस मिटटी का रंग लाल दिखाई देता है। यह मिट्टी आर्कियन्स एवं ग्रेनाइट के अवछरण से बनी है।
कम आद्रता ग्राही होने के कारण जल के अभाव में कठोर हो जाती है जिसके कारण इस मिट्टी में कृषि कार्य हेतु अधिक जल की आवश्यकता होती है।
प्रदेश के लगभग 10 से 15% भाग में इस मिट्टी का विस्तार है। मुख्य रूप से प्रदेश के बस्तर सुकमा बीजापुर एवं दंतेवाड़ा जिलों में या मिट्टी पाई जाती है।
नोट :-
- लाल पीली मिट्टी तथा काली मिट्टी के मिश्रण से निर्मित डोरसा मिट्टी भी प्रदेश में पाई जाती है।
- प्रदेश में कछारी एवं वनीय मिट्टियाँ भी पाई जाती है।
- कछारी मिट्टी नदी घाटियों के समीप पाई जाती है जिसे जलोढ़ मिट्टी कहा जाता है। यह मिट्टी बहुत अधिक उपजाऊ होती है।
- वनीय मिट्टियाँ उच्च भूमि में पाई जाती है इसमें वनस्पति एवं वृक्ष अच्छी तरह से विकसित होती है।
Final Thoughts :-
लेख को पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद ! हम उम्मीद करते हैं कि लेख को पढ़ने के बाद कुछ नॉलेज मिला होगा । इस लेख में हमने छत्तीसगढ़ के मुख्य पांच प्रकार की मिट्टियों का विश्लेषण किया है। ये मिट्टियां तथा उनके स्थानीय नाम बहुत ही महत्वपूर्ण है। कई बार यहां से प्रश्न पूछे जा चुके हैं। अगर आप प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो बहुत ही ध्यान से पढ़ें।
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