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छत्तीसगढ़ की लोक कला एवं संस्कृति

 

छत्तीसगढ़ की लोक कला एवं संस्कृति


छत्तीसगढ़ की लोक कला एवं संस्कृति

इस लेख में हम छत्तीसगढ़ की लोक कलाएँ एवम संस्कृति के बारे में जानकारी देने वाले है|आजकल लगभग सभी state लेवल के exame में लोक कलाएँ एवम संस्कृति से संबंधित प्रश्न पूछे जाते है| अगर आप cgpsc या cgvyapam या फिर कोई दूसरी compatative exame की तयारी कर रहे है तो ये लेख आपके लिए बहुत हीं महत्वपूर्ण है| इस लेख में हम लोक कला व संस्कृति के कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं  पर विचार प्रस्तुत करने जा रहे हैं तो चलिए इन सभी Topic पे चर्चा करते है-


लोकनाट्य

छत्तीसगढ़ में लोकनाट्य की परम्परा पुरानी है, यह छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक आत्मा है।लोकनाट्य में गीत, संगीत और नृत्य होते हैं, जिसे कथा सूत्र में पिरोकर प्रेरणादायी और सरस
बनाया जाता है।छत्तीसगढ़ में विश्व की प्रथम नाट्यशाला होने का गौरव प्राप्त है। सरगुजा जिले के मुख्यालय
अम्बिकापुर से 50 किमी दूर रामगढ़ की पहाड़ी पर तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व एक नाट्यशालाका निर्माण किया गया था।
छत्तीसगढ़ में लोककला का मर्मज्ञ दाऊ रामचन्द्र देशमुख को माना जाता है।
उनके दिशा-निर्देशन में वर्ष 1971में प्रमुख लोकनाट्य चन्दैनी के गोंदा की प्रस्तुति हुई।
• इस नाट्य रचना के बाद में सैकड़ों प्रदर्शन किए गए छत्तीसगढ़ में लोककला के पुजारी दाऊ महासिंह चन्द्राकर के सोहना बिहान व लोरिक चन्दा की प्रस्तुति ने लोकनाट्य का सफलतम इतिहास बनाया।


रहस

यह छत्तीसगढ़ की आनुष्ठानिक नाट्य विधा है। रहस का अर्थ रास या रामलीला है। श्रीमद्भागवत के आधार पर श्री रेवाराम द्वारा रहस की पाण्डुलिपियाँ बनाई गई थी। इसी आधार पर रहस का प्रदर्शन होता है रहस का आयोजन बेड़ा में किया जाता है। यह बिलासपुर, रतनपुर, मुंगेली, जांजगीर व बिल्हा में अत्यधिक लोकप्रिय है।

नाचा

छत्तीसगढ़ का यह प्रमुख लोकनाट्य है। नाचा के अन्तर्गत गम्मत का विशेष महत्त्व होता है। प्रहसनात्मक शैली में रचित इन गम्मतों में हजारों लोग खुले आसमान के नीचे रातभर आनन्द लेते हैं। नाचा में केवल पुरुष कलाकार ही अभिनय करते हैं। विवाह तथा अन्य खुशी के अवसरों पर नाचा का
आयोजन किया जाता है।


छत्तीसगढ़ की पहली नाचा पार्टी रेवली नाचा पार्टी है, जिसका गठन वर्ष 1928 में किया गया था। दाऊ दुलारसिंह 'मन्दराजी' इसके संस्थापक व लालू राम, मदनलाल निषाद, जराठनात निर्मलक, प्रभुराम यादव इसके श्रेष्ठ कलाकार थे। पद्मश्री गोविन्दराम निर्मलकर नाचा के ख्यातिलब्ध कलाकार हैं।


चन्दैनी के गोंदा

लोरिक चन्दा की प्रेम गाथा को मूलरूप में राउत जाति के लोग गाते हैं। इसके साथ चन्दैनी-गोंदा नाट्य के रूप में प्रचलित है। यह एक विशिष्ट पहचान बन गई है।


ककसार

ककसार बस्तर की अबुझमाड़िया जनजाति का मूलत: पूजा नृत्य है। मुड़िया लोगों में यह माना जाता है कि लिंगादेव (शंकर) के पास 18 बाजे थे और उन्होंने सभी बाजे मुड़िया लोगों को दे दिए। इन्हीं बाजों के साथ वर्ष में एक बार ककसार पर्व में लिंगादेव को प्रसन्न करने के लिए गाते-बजाते हैं।


पण्डवानी

महाभारत के पाण्डवों की कथा का छत्तीसगढ़ लोकरूप पण्डवानी है। पण्डवानी का मूल आधार परधान और देवारों की पण्डवानी गायकी, महाभारत की कथा और सबल सिंह चौहान की दोहा चौपाई महाभारत है। पण्डवानी की दो शाखाएँ हैं-वेदमती एवं कापालिका


दहिकांदो

राज्य के मैदानी भाग के आदिवासी कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर दहिकांदो नामक नृत्य का प्रदर्शन करते हैं। यह करमा और रास का मिला-जुला रूप है।


भतरानाट

• भतरानाट बस्तर में ओडिशा से आया है, इसलिए कुछ लोग इसे उड़िया नाट भी कहते हैं।

• इसमें भरत मुनि के नाट्यशास्त्र की अनेक बातें विद्यमान हैं। भतरानाट में प्रमुख नाट गुरु होता है तथा नाट की बोली भतरी होती है। नाट की कथावस्तु पौराणिक प्रसंग ही है। अभिमन्यु वध, जरासन्ध वध, कीचक वध, हिरण्यकश्यप वध, रावण वध, दुर्योधन वध, लक्ष्मी पुराण नाट, लंका दहन और कंस वध नाट बस्तर के भतरानाट में सर्वाधिक प्रचलित हैं। नाट का मंचन खुले मैदान में होता है तथा सभी अभिनय करने वाले पुरुष होते हैं।


लोकनृत्य

छत्तीसगढ़ में विविधतापूर्ण लोकनृत्यों की प्रवृत्ति मिलती है। यहाँ का जनजातीय क्षेत्र हमेशा अपने लोकनृत्यों के लिए विश्व प्रसिद्ध रहा है। अनेक लोकनृत्य इस क्षेत्र में प्रचलित हैं। विभिन्न अवसरों, पर्यों से सम्बन्धित भिन्न-भिन्न नृत्य प्रचलित हैं, जिनमें स्त्री-पुरुष समान रूप से भाग लेते हैं।


छत्तीसगढ़ के प्रमुख नृत्यों का वर्णन इस प्रकार है

पन्थी नृत्य

यह छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध लोकनृत्य है। यह सतनामी पन्थियों द्वारा किया जाता है। यह नृत्य माघ पूर्णिमा के दिन जैतखाम की स्थापना पर उसके चारों ओर किया जाता है। पन्थी नृत्य में गुरु घासीदास की चरित्र गाथा को बड़े ही मधुर राग में गाया जाता है। इस नृत्य में नृतक कलाबाजी करते हैं और पिरामिड बनाते हैं।


करमा नृत्य

करमा नृत्य सम्भवत: अंचल का सबसे पुराना नृत्य है। यह नृत्य विजयादशमी से आरम्भ होकर अगली वर्षा ऋतु के आरम्भ तक चलता है। इसमें आठ पुरुष और आठ स्त्रियाँ नृत्य करतीहैं। 

करमा नृत्य के मुख्यत: चार रूप हैं-करमा खरी, करमा खाय, करमा झुलनी और करमा हलकी।


मान्दरी नृत्य

यह मुड़िया जनजाति का नृत्य है। मान्दरी नृत्य घोटुल का प्रमुख नृत्य है। इसमें मान्दर की करताल पर नृत्य किया जाता है। इसमें गीत नहीं गाया जाता है। पुरुष नर्तक इसमें हिस्सा लेते हैं। दूसरी तरह के मान्दरी नृत्य में चिटकुल के साथ युवतियाँ भी हिस्सा लेती हैं। इसमें कम-से-कम एक चक्कर मान्दरी नृत्य अवश्य किया जाता है। मान्दरी नृत्य में शामिल हर व्यक्ति कम-से-कम एक थाप के संयोजन को प्रस्तुत करता है, जिस पर पूरा समूह नृत्य करता है।


गौर नृत्य

० दक्षिण बस्तर भाग में निवास करने वाली बाइसन। नई फसल पकने के समय माड़िया जनजाति के लोग गौर नामक पशु के सींग को कौड़ियों में सजाकर सिर पर धारण कर अत्यन्त आकर्षण व प्रसन्नचित मुद्रा में नृत्य करते हैं।

हॉर्न माडिया या गौर सिंगी माड़िया का प्रसिद्ध नृत्य

है।

० यह छत्तीसगढ़ ही नहीं, बल्कि विश्व के प्रसिद्ध लोकनृत्यों में एक है। वेरियन एल्विन ने इसे देश का सर्वोत्कृष्ट नृत्य माना है।

० झाण्डु राम देवांगन राज्य के पण्डवानी गुरु गायक के नाम से जाने जाते हैं।

० परधोनी नृत्य विवाह के अवसर पर किया जाता है।


सरहुल नृत्य

यह छत्तीसगढ़ की उराँव जनजाति का प्रसिद्ध लोकनृत्य है। उराँव जनजाति के लोग सरना नामक देवी का निवास साल (सरई) वृक्ष में मानते हैं एवं प्रतिवर्ष चैत्रमास की पूर्णिमा पर साल वृक्ष के चारों ओर घूम-घूमकर उत्साहपूर्वक यह नृत्य करते हैं। वस्तुत: उराँव जनजाति की मान्यता है कि इनके देवता साल नामक वृक्ष में निवास करते हैं।


दशहरा नृत्य

यह बैगा आदिवासियों का आदि नृत्य है। विजयादशमी से प्रारम्भ होने के कारण इस नृत्य का नाम दशहरा नृत्य पड़ा।


थापटी नृत्य

थापटी कोरकुओं का पारम्परिक नृत्य है, जो चैत्र-बैसाख में कोरकू स्त्री-पुरुष द्वारा किया जाताहै। युवकों के हाथ में एक पंछा और झांझ नामक वाद्य होता है।


तारा नृत्य

तारा नृत्य एक पुत्तलिका नृत्य है। इस पुत्तलिका को लकड़ी या घास से बनाया जाता है। घास की सामग्री को मानवाकृति दे दी जाती है।


ढाँढल नृत्य

यह नृत्य कोरकू आदिवासियों द्वारा ज्येष्ठ-आषाढ़ की रातों को किया जाता है। ढाँढल नृत्य के साथ शृंगार गीत भी गाए जाते हैं और नृत्य करते समय एक-दूसरे पर छोटे-छोटे डण्डों से प्रहार करते हैं।


परधौनी नृत्य

बैगा जनजाति का यह लोकप्रिय नृत्य है, जो विवाह के अवसर पर बारात पहुँचने के साथ किया जाता है। वर पक्ष वाले इस नृत्य में हाथी बनकर नृत्य करते हैं।


गेण्डी नृत्य

यह मुड़िया जनजाति का प्रिय नृत्य है, जिसमें पुरुष लकड़ी की बनी हुई ऊँची गेण्डी पर चढ़कर तेज गति से नृत्य करते हैं। जिसे गेण्डी नृत्य या डिटोंग नृत्य कहा जाता है। इस नृत्य में शारीरिक कौशल व सन्तुलन के महत्त्व को प्रदर्शित किया जाता है। सामान्यत: घोटुल के अन्दर व बाहर इस नृत्य को विशेष आनन्द के साथ किया जाता है।


हुल्की पाटा नृत्य

हुल्की पाटा घोटुल का सामूहिक मनोरंजक लोकनृत्य है। इसे अन्य सभी अवसरों पर भी किया जाता है। इसमें लड़कियाँ व लड़के दोनों भाग लेते हैं। हुल्की पाटा मुरिया संसार के सभी कोनों को स्पर्श थोड़ा-बहुत अवश्य करते हैं। हुल्की पाटा मुड़िया जनजाति की कल्पनाओं का व्यावहारिक गीत है।


बिल्मा नृत्य

बिल्मा बैगा आदिवासियों का लोकप्रिय नृत्य है, जो प्राय: शीत ऋतु में आयोजित होता है। इसमें स्त्री पुरुष दोनों भाग लेते हैं।

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